हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म भी हमारी रक्षा करेगा: आचार्यश्री महाश्रमण
बाडोली, 25 फरवरी, 2023
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः लगभग 12 किलोमीटर का विहार कर अपनी धवल सेना के साथ बाडोली ग्राम पधारे। परम पावन ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि चार प्रकार की आत्माएँ होती हैंµपरमात्मा, महात्मा, सदात्मा और दुरात्मा। परमात्मा तो जो आत्माएँ परम अवस्था को प्राप्त हो गई हैं और सिद्ध-मुक्त होकर मोक्ष में विराजमान हो गई हैं। संसारी आत्माएँ जो हैं, उनमें शेष तीन आत्माएँ होती हैं। जिनके मन, वचन और शरीर में एकरूपता होती है, सरलता होती है जो त्यागी-तपस्वी साधु-संत पुरुष लोग हैं, वे महात्मा होते हैं।
जो साधु तो नहीं हैं लेकिन सज्जन लोग हैं और सदाचारी, अच्छे-भले आदमी हैं। जिनके जीवन में नैतिकता-ईमानदारी है, वे सदात्मा होते हैं। जिनके मन में कुछ, वाणी में कुछ और करते कुछ हैं, कथनी-करनी में असमानता रहती है। छल-कपट-झूठ का ज्यादा प्रयोग करने वाले, जो हिंसा के कार्यों में लगे रहते हैं, वे दुरात्मा हैं। अगर दुनिया में सज्जन आदमी मिल सकते हैं, तो दुर्जन आदमी भी मिल सकते हैं। आचरण से सज्जन, दुर्जन का पता लग सकता है। दुर्जन विद्या-ज्ञान का उपयोग विवाद में करता है। सज्जन के पास विद्या है, तो वह दूसरों को ज्ञान देकर अपने ज्ञान को बढ़ाएगा। दुर्जन के पास धन है, तो वह धन का घमंड करेगा। सज्जन के पास धन है, तो वह घमंड नहीं दान करेगा।
दुर्जन के पास शक्ति-ताकत है तो वह दूसरों को तकलीफ देगा। सज्जन के पास शक्ति है तो वह किसी की सेवा-रक्षा करेगा और परोपकार करेगा। दुनिया में सारे सदात्मा बनें, दुरात्मा न बनें। दुरात्मा तो खुद का नुकसान कर लेती है। एक आदमी किसी का गला काट देता है, वो इतना नुकसान हमारा नहीं करता जितना नुकसान खुद की दुरात्मा कर देती है। जो निर्दयी, निष्ठुर और सदाचरणविहीन है, जब मौत आती है, तब वह पश्चाताप करता है कि अब तो मौत आ गई, अब मेरा क्या होगा? मैंने नरक की बात सुनी है, मैंने जिंदगी में पाप बहुत किए हैं। अब मुझे नरक में जाना पड़ेगा। गृहस्थ सदात्मा बनें, बड़े-बड़े पापों से तो बचने का प्रयास करें।
धर्म ऐसा तत्त्व है, जो हमारी आत्मा को दुरात्मा बनने से बचा सकता है। हमारी अणुव्रत यात्रा चल रही है। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम जीवन में आ जाते हैं, तो गृहस्थों की आत्मा दुरात्मा बनने से बच सकती है। दुनिया में आध्यात्मिकता आज भी है, वह तो अमर है। धर्म कभी मरता नहीं है। धर्म है तभी दुनिया चल रही है। अणुव्रत एक दीप-शिखा है। सद्भावना, नैतिकता, नशामुक्ति को हम समझाकर गृहस्थों को अणुव्रत स्वीकार करा रहे हैं। गृहस्थ सदात्मा बने और धर्म जीवन में आ जाए। धर्म के दो प्रकार हैंµउपासनात्मक व आचरणात्मक। धर्म आचरण में आए तो हमारी रक्षा करे, यह एक प्रसंग से समझाया। हम धर्म की रक्षा करेंगे तो धर्म भी हमारी जीवन में रक्षा कर सकेगा।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि इस लोक में चंदन शीतल होता है। चंदन से भी अधिक शीतल चंद्रमा होता है। चंद्रमा से भी शीतल साधु की संगति होती है। भारतीय संस्कृति में ऋषियों-मुनियों को सम्मान दिया गया है। जैन परंपरा में भी आचार्यों, साधु-संतों को महत्त्व दिया जाता है, क्योंकि उनसे हमें शीतलता की अनुभूति होती है। पूज्यप्रवर के स्वागत में नीतेश श्रीश्रीमाल, आर्या डूंगरवाल, राकेश बावड़िया ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। महिला मंडल, तेयुप द्वारा गीत प्रस्तुत किया गया। ज्ञानशाला, कन्या मंडल, बहुमंडल ने भावनाएँ व्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।