विशुद्ध और प्रेममय भक्ति से हो सकते हैं भगवान के साक्षात दर्शन : आचार्यश्री महाश्रमण
अगिया ग्राम, 22 फरवरी, 2023
भवसागर तारक आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः 15 किलोमीटर विहार कर खेड़ब्रह्मा समाज द्वारा संचालित माॅडल रेजिडेंशियल स्कूल अगिया में पधारे। मंगल प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए युगदृष्टा ने फरमाया कि भक्ति एक तत्त्व है और अध्यात्म का एक प्रयोग भी है। णमो शब्द का नवकार मंत्र में पाँच बार प्रयोग हुआ है। इसमें पाँच पारमार्थिक शक्तियों को नमन किया गया है। चैबीस तीर्थंकरों को नमस्कार किया गया है-ऋषभ से लेकर भगवान महावीर तक। लोगस्स-उक्कीत्तं में प्रत्येक तीर्थंकर का नाम लेकर चैबीस तीर्थंकरों को वंदन किया गया है। अतीत में जो तीर्थंकर हो गए हैं, वे भी वंदनीय हैं, वर्तमान में जो महाविदेह में सीमंधर स्वामी आदि भी वंदनीय है। अनंत शक्ति संपन्न और परम अर्हता संपन्न, चार घनघाती कर्मों को जिन्होंने क्षय कर दिया है, वे पुरुष रत्न व सिद्ध आत्माएँ वंदनीय हैं।
नवकार मंत्र में अर्हत को सबसे पहले नमस्कार किया गया है। बाद में सिद्धों, आचार्यों, उपाध्यायों और सब साधुओं को नमस्कार किया गया है। ये पाँचों अध्यात्म से ओत-प्रोत आत्माएँ हैं। अर्हत और सिद्ध तो वीतराग ही होते हैं और आचार्य तीर्थंकर के प्रतिनिधि होते हैं। नवकार मंत्र एक भक्ति का प्रयोग एवं मंत्र है और बड़ा निर्मल-विशुद्ध, आध्यात्मिक पाठ है। जो आगम वाङ्मय में भी हमें पढ़ने को मिलता है। भक्ति में अहंकार न हो।
समर्पण है, तो समर्पण निःशर्त हो तो वह उच्च कोटि का समर्पण है। आचार्यप्रवर ने एक प्रसंग से समझाया कि विशुद्ध भक्ति में प्रेम होता है तो भगवान साक्षात् दर्शन दे सकते हैं। भक्ति के कई स्तर हो सकते हैं। अंतर में भक्ति का भाव हो। श्रावक अर्हन्नक का उदाहरण हमारे सामने है। शरीर जाए तो जाए पर धर्म को तो नहीं छोड़ूँगा। धर्म कोई कपड़ा नहीं है, जो कभी भी उतार दें। श्रावकत्व तो दृढ़धर्मी जैसा होता है। साधु हो या श्रावक दोनों रत्नों की मालाएँ हैं। धर्म को कभी नहीं छोड़ना चाहिए। धर्म के प्रति भक्ति जीवनी शक्ति होती है। धर्म के शासन, धर्म की आज्ञा को नहीं छोड़ना, यह श्रद्धा बलवती हो। साधु के महाव्रत अमूल्य हीरे हैं। साधु इनकी सुरक्षा करे। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार द्वारा किया गया।