साध्वी गुणश्री जी के प्रति काव्यांजलियाँ
अर्हम्
साध्वी कार्तिकयशा
सुनो लागे ओ केंद्र समाधि देखो थांरे बिन
गुणवान सती गुणश्रीजी याद करां म्हैं रात-दिन
गुरु दृष्टि ने आराध्या रात-दिन।
ओले-दोले घूमताँ सेवा में रमता
मुखड़ो हँसतो शोभतो सबरां मणगमता
स्नेहिल ममता म्हें पाई देखो थास्यूं रात-दिन॥
जाप ध्यान समरण कर्यो, नित्य नियम रे साथ
लाड़ लड़ाता ही घणा, जद् भी जाता पास
सहज सरल और मृदु व्यवहार निरखियो रात-दिन॥
ठाकर हा ठीकाणे रा, नजरां थांरी तेज
कुण कठै कांई करे, जाणण रो हो क्रेज
सजग रह्या अंतर बाहर में देखो रात-दिन॥
पैंतीस वर्षों तक बणी, बीदाणे री शान
भायां बायां रो सदा, राख्यो घणो ही मान
गहरो अपनापन सगलां पायो थास्यूँ रात-दिन॥
गुरु-दर्शन कर धन्य बनूँ, मन री गहरी आस
प्रमुखाश्रीजी स्यूँ मिलूँ, कर ल्यूँ बातां खास
मन री मन में क्यूँ राख पधार्या देखो मध्य-दिन॥
लय : उमराव थारी---