साँसों का इकतारा

साँसों का इकतारा

(132)

(1) एक तूफान आया
ऐसा भयंकर तूफान
जो बोधि के महान वटवृक्ष को
इतने आहिस्ते से
उखाड़कर ले गया कि
किसी को अहसास तक नहीं होने दिया।

(2) एक देदीप्यमान सूरज
मन-मंदिर के हर कोने को
उजालने वाला सूरज
जिसके सामने खुली आँखों
देखना भी मुश्किल था
अचानक बादलों की ओट हो गया
मानो सृष्टि का
प्राणतत्त्व ही खो गया।

(3) एक ऊर्जा
जन-जन को जीवन बाँटने वाली ऊर्जा
जो बह रही थी लाखों-लाखों प्राणों में
अचानक यों थम गई
जैसे पहाड़ से उतरती
बरसाती नदी जम गई।

(4) एक उजली छवि
जन-जन की आँखों में बसी अलौकिक छवि
जिसे देखकर मन कभी भरता नहीं था
अचानक यों तिरोहित हो गई
जैसे एक विराट चेतना शून्य में खो गई।

(5) एक युग
जो चल रहा था
पूरी रफ्तार के साथ
जिसका हर दिन था सोना
और चाँदी थी उजली रात
उसका इतना अप्रत्याशित अवसान
कभी सोचा नहीं था।

(समाप्त)