संयम व तप की साधना आत्मानुशासन में सहायक: आचार्यश्री महाश्रमण
शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी की प्रथम वार्षिक पुण्यतिथि का आयोजन
साहित्य लेखन और कविता सृजन में सिद्धहस्त थी शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभाजी: आचार्यश्री महाश्रमण
मानसा, गांधीनगर (गुजरात) 6 मार्च, 2023
महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी का प्रातः लगभग 7 किलोमीटर का विहार कर मानसा स्थित एम0जी0 चैधरी विद्या संकुल में पावन प्रवास हुआ। होली रंगों का उत्सव है। प्रेक्षाध्यान में केंद्रों पर रंगों का ध्यान करके हम आध्यात्मिक होली खेल सकते हैं। आज फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी है। आज से लगभग एक वर्ष पूर्व हमारे धर्मसंघ की शासनमाता अष्टम् साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने दिल्ली में महाप्रयाण किया था। आज उनकी प्रथम वार्षिक पुण्यतिथि समायोजित है। हम सरल हृदय से उनकी आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना करते हैं कि उनकी आत्मा ऊध्र्वारोहण करती हुई शीघ्रतय अपने परम लक्ष्य मोक्ष को प्राप्त करे।
साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी ने लगभग 50 वर्षों से अधिक समय तक धर्मसंघ की सेवा की थी। तीन आचार्यों की सन्निधि में रहकर साध्वी समाज की व्यवस्था का दायित्व निर्वहन किया था। आप शांत, सौम्य और समता की प्रतिमूर्ति थी। उन्हें गुरुदेव तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी एवं वर्तमान आचार्य श्री महाश्रमण जी ने धर्मसंघ में महाश्रमणी, संघ महानिर्देशिका और शासनमाता पद पर स्थापित किया था।
तेरापंथ धर्मसंघ के एकादशम अधिशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी ने शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी की स्मृति करते हुए फरमाया कि शास्त्रकार ने आत्मानुशासन की बात बताई है और कहा हैµश्रेष्ठ यही है कि मैं अपनी आत्मा का संयम और तप के द्वारा दमन कर दूँ। संयम और तप ये बहुत बड़ी ताकत है। अनेक प्रकार की शक्तियाँ होती हैं, पर उनमें आत्म-शक्ति सर्वोत्तम शक्ति होती है। अंतराय कर्म से अनंत शक्ति उजागर होती है, वह शक्ति सर्वश्रेष्ठ शक्ति होती है। आत्मबल बड़ा ऊँचा बल होता है। उसके अनुपालन के लिए संयम और तप अपेक्षित है। आत्म अनुशासना में भी संयम और तप की साधना सहायक हो सकती है। अनुशासन दो प्रकार का होता हैµस्वानुशासन और परानुशासन। स्वानुशासन के आधार स्तंभ हैंµसंयम और तप।
श्रद्धालुओं को आत्मानुशासन के लिए संयम एवं तप की साधना करने की प्रेरणा प्रदान करते हुए आचार्यश्री ने फरमाया कि आज फाल्गुन शुक्ला चतुर्दशी है। यह दिन हाजरी, स्मरणा और प्रेरणा का दिन हमारे यहाँ होता है। ऊनोदरी भी एक है। महाप्राण ध्वनि व ध्यान का प्रयोग करवाया। हाजरी का वाचन करते हुए चारित्रात्माओं को प्रेरणा प्रदान करवाई। चारित्रात्माओं ने लेख-पत्र का वाचन किया।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि आज से एक वर्ष पूर्व हमारे धर्मसंघ की आठवीं साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी का दिल्ली में महाप्रयाण हो गया था। साध्वीप्रमुखाश्री जी के जीवन संस्मरण को विस्तार से समझाया। वे अंतरंग परिषद् की सदस्या थी। उन्होंने तीन-तीन आचार्यों की सेवा की थी। अहिंसा यात्रा में भी आप साथ रही थीं। उनका मनोबल बड़ा दृढ़ था। उनकी दक्षिण की यात्रा दो बार हो गई थी। मैंने उन्हें गोहाटी में असाधारण साध्वीप्रमुखा कहा था। भीलवाड़ा चातुर्मास तक उनका स्वास्थ्य लगभग ठीक था। लाडनूं में उनका अमृत महोत्सव भी मनाया था। अध्यात्म साधना केंद्र, दिल्ली में अंत समय रखा था। 17 मार्च को उनका महाप्रयाण हो गया था। जितना हो सका उनको आध्यात्मिक सहयोग दिलाया था। तीन पीढ़ियों के साथ उन्होंने काम किया था। हमने उनको लाडनूं में शासनमाता के रूप में स्वीकार किया था।
वे हमारे धर्मसंघ में अनेक रूपों में रही थीं। ऐसी साध्वीप्रमुखा के प्रति मैं सम्मान की भावना अभिव्यक्त करता हूँ। मेरे से वे उम्र में 21 वर्ष और दीक्षा पर्याय में 14 वर्ष बड़ी थी। साहित्य लेखन एवं कविता सृजन में उनको नैपुण्य प्राप्त था। वे सिद्धहस्त जैसी थीं। अनेक भाषाओं का उनमें वैदुष्य था। अनेक रूपों में उनका योगदान रहा। मुख्य मुनि महावीर कुमार जी ने अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि आज का दिन तेरापंथ का ऐतिहासिक दिवस है। पूज्यप्रवर ने आज के दिन लगभग 47 किलोमीटर की यात्रा करके साध्वीप्रमुखाश्री जी को दर्शन दिए थे। पूज्यप्रवर का गुरुता का भाव था तो साध्वीप्रमुखाश्रीजी को गुरु के प्रति कैसा समर्पण और विनय का भाव हो। वैसा विराट रूप उनमें था।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि लोग आलोक से शून्य होते हैं, भयभीत होते हैं, कुछ लोग आलोक को जानते भी हैं और उसका सम्यक् उपयोग भी करते हैं। साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी का जीवन आलोकधर्मा, नेतृत्वधर्मा था। उन्होंने अपने जीवन में आलोक का ज्ञान प्राप्त किया। आचार और सद्विचार का आलोक उन्होंने प्राप्त किया। उस आलोक को बिरवाने का प्रयत्न किया।साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी केशर की क्यारी के समान विशिष्ट थीं। प्रबुद्ध साध्वीप्रमुखा थीं। उनका ज्ञान गंभीर था। उनकी लेखनी में प्रबुद्धता थी। उनकी कविताओं में भक्त माधुर्य रस था। उनकी व्यक्तित्व कला भी विशिष्ट थी।
मुनि धर्मरुचि जी, साध्वी सुमतिप्रभा जी, साध्वी मुदितयशा जी एवं समणी कुसुमप्रज्ञा जी ने भी अपनी अभिव्यक्ति दी। साध्वीवृंद द्वारा गीत प्रस्तुत किया गया। साध्वियों द्वारा भावपूर्ण प्रस्तुति दी गई।
स्थानीय सभाध्यक्ष अशोक मेहता ने पूज्यप्रवर का स्वागत किया। स्कूल की ओर से बिजु भाई चैधरी एवं पूनमचंद खीमेसरा ने भावना अभिव्यक्त की। महिला मंडल व तेयुप ने गीत की प्रस्तुति दी। ज्ञानशाला की प्रस्तुति हुई। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।