मनुष्य की इच्छाओं का परिसीमन जरूरी: आचार्यश्री महाश्रमण
महुडी, गांधीनगर (गुजरात) 3 मार्च, 2023
तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः प्रसिद्ध जैन तीर्थ महुडी में पधारे। महुडी घंटाकर्ण महावीर का स्थान है। आचार्य बुद्धिसागरजी द्वारा स्थापित जैन मंदिर में भी पूज्यप्रवर पधारे। मूर्तिपूजक साध्वियों ने भी आचार्यश्री के दर्शन कर अपनी भावना अभिव्यक्त की। महुडी में आध्यात्मिक सूंखड़ी परोसते हुए वर्तमान के महावीर ने फरमाया कि आदमी के भीतर इच्छाएँ होती हैं। वीतराग पुरुष तो निरांशष हो जाते हैं। विशिष्ट मुनि तो निस्पृह अवस्था में चले जाते हैं। परंतु सामान्य आदमी इच्छाशील होता है। इच्छा दो प्रकार की होती हैंµसद्-इच्छा और दुरिच्छा। तीसरा प्रकार मानें तो सामान्य इच्छा हो जाती है। आदमी सद्-इच्छा करे कि मेरा आध्यात्मिक विकास हो। तप-साधना करे, आध्यात्मिक सेवा करे, प्रमाद में न रहे। साधु हो तो साधुपन और श्रावक हो तो श्रावकपन अच्छा बना रहे।
आदमी दुरिच्छा न करे, अमंगल कामना न करे। इन सबसे बचने का प्रयास करे। लोभ की चेतना जागृत होने पर आदमी लुप्त बन जाता है, उसे सोना-चाँदी मिल जाए तो भी और चाहिए, कामना बनी रहती है। इच्छा आकाश के समान अनंत है। इच्छा का कोई पार नहीं है। मूढ़-मोहग्रस्त आदमी में असंतोष रहता है। पंडित, ज्ञानी, विवेक संपन्न होता है, वह संतोष धारण कर लेता है। असंतोष का पार नहीं, संतोष परम सुखदायक होता है। पूज्यप्रवर ने बाव क्षेत्र के साधु-साध्वियों एवं श्रावक-श्राविकाओं को वर्षीतप के प्रत्याख्यान करवाए। शारीरिक अनुकूलता हो जाए तो वर्षीतप अच्छा अनुष्ठान है। गुरुदेव ने फरमाया कि आदमी भौतिक इच्छा पर नियंत्रण रखे और इच्छा को मोड़ दे। दुरिच्छा न रहे। शुभेच्छा रहे। अच्छे रूप में महत्त्वकांक्षा रखे। इच्छा का परिसंयम अच्छी बात है। आज हम जैन समाज से जुड़े स्थान में आए हैं। तीर्थंकर से बड़ा कोई अध्यात्म का अधिकृत प्रवक्ता नहीं होता है। दया के लिए तीर्थंकर प्रवचन करते हैं। हम वीतरागता की दिशा में आगे बढ़ें।
गुरुदेव तुलसी ने अणुव्रत और आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने प्रेक्षाध्यान के माध्यम से जनकल्याण का कार्य किया था। हमारी साधना की इच्छा बढ़ती रहे और संवर की साधना का विकास हो। संवरयुक्त निर्जरा हो। इच्छाओं का परिसीमन और परिष्कार करने का प्रयास करें। मुनि निकुंज कुमार जी, मुनि मार्दव कुमार जी ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि आचार्यप्रवर के सामने नई-नई परिषद् रहती हैं। अनेक वर्गों के लोग पूज्यप्रवर के दर्शन करते हैं। आज पूज्यप्रवर की सन्निधि में वर्षीतप साधक आए हैं। वर्षीतप से अपने आप में आह्लाद की अनुभूति होती है। जैन परंपरा में तपस्या को महत्त्व दिया गया है। तपस्या के दो प्रकार हैंµबाह्य और आभ्यंतर तप। मुनि निकुंज कुमार जी ने अपनी भावना श्रीचरणों में अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर के स्वागत में महुडी तीर्थ की ओर से नीलेश भाई मेहता, भूपेंद्र भाई बोहरा ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। व्यवस्था समिति की ओर से महुडी तीर्थ के न्यासियों का सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।