अधिकार अहंकार न बने, उपहार बने: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अधिकार अहंकार न बने, उपहार बने: आचार्यश्री महाश्रमण

सलाल साबरकांठा (गुजरात), 1 मार्च, 2023
युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः लगभग 13 किलोमीटर का विहार कर सलाल पधारे। परमपूज्य ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी के भीतर ममत्व की चेतना भी होती है। वीतराग पुरुष या विशेष साधक को छोड़कर कहीं न कहीं, किसी न किसी रूप में, हर मनुष्य की चेतना में ममत्व का भाव रहता है। जहाँ मोह मूच्र्छा होती है, वहाँ परिग्रह हो जाता है। हिंसा का कारण परिग्रह बन सकता है। प्रवृत्ति की पृष्ठभूमि में वृत्ति काम करती है। कारण रूप में वृत्ति होती है, फिर कार्य रूप में प्रवृत्ति होती है। जैसे अहिंसा को परम धर्म कहा गया है, वैसे अपरिग्रह को भी परम धर्म कहा जा सकता है।
गुरुदेव ने कहा कि सामान्य आदमी में ममत्व की भावना सघन न हो, प्रतनू रहे। शरीर के प्रति भी मोह भाव नहीं रहे। अहंकार और ममकार जब उग्र रूप में हो जाते हैं, तो ये आदमी की चेतना को विकृत बनाने वाले बन सकते हैं। मनुष्य को धन, ज्ञान या सत्ता का घमंड नहीं करना चाहिए। विद्या विनय से शोभित होती है। सत्ता सेवा के लिए होती है, अधिकार का दुरुपयोग न हो। अधिकार अहंकार न बने, उपहार बने। इसी तरह से आदमी रूप का भी घमंड न करे। चेहरे का ज्यादा महत्त्व नहीं है। ज्यादा महत्त्व चरित्र-साधना का है। एक प्रसंग के माध्यम से समझाया कि चेहरा बदलना मुश्किल है, पर ज्ञान-चारित्र अच्छा रहे। शरीर और आत्मा अलग है। शरीर अशाश्वत है। आत्मा शाश्वत है, वह अच्छी रहे। गृहस्थ के जीवन में आत्मा में सद्भावना, नैतिकता, रहे तो आत्मा अच्छी रह सकती है।
आज सलाल आए हैं। यहाँ की जनता में भी खूब अच्छी भावना बनी रहे। अणुव्रत यात्रा चल रही है। अगर अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम जीवन में आएँ तो जिंदगी अच्छी रह सकती है।साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि हिंदुस्तान में दो परंपराएँ विकसित हुईंµवैदिक परंपरा व श्रमण परंपरा। वैदिक परंपरा में तीर्थयात्रा का महत्त्व है। श्रमण परंपरा में भी कुछ लोग तीर्थ यात्रा करते हैं। तेरापंथ की परंपरा को मानने वालों के लिए तो तीर्थ वहीं होता है, जहाँ उनके गुरु होते हैं। गुरु दर्शन का मतलब है कि उन्होंने तीर्थ क्षेत्र में अवगाहन कर लिया। पूज्यप्रवर के स्वागत में तेरापंथ सभाध्यक्ष मिश्रीलाल चोरड़िया, दिगंबर समाज से दिनेशभाई गांधी, स्थानकवासी समाज से पंकज बणवट, अखिल भारतीय संत समिति से महंत सुनीलदास जी, टीपीएफ महामंत्री विमलशाह, तपस्वी जैन, महिला मंडल अध्यक्षा ललीता श्रीश्रीमाल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। महिला मंडल एवं कन्या मंडल द्वारा गीत प्रस्तुत किया।