जय शासनमाता कनकप्रभा
शासन गौरव साध्वी कनकश्री
जय शासनमाता कनकप्रभा, गण में रंगराता कनकप्रभा,
दी जीवनभर सबको साता, जन-मनहारी व्यक्तित्व विभा।
वात्सल्यमयी कारुण्यमयीऽऽऽ साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा।।
वैराग्यमयी विज्ञानमयी, आनंदमयी आलोकमयी,
तप-जप-श्रुत आराधन निरता, पावन निर्झरणी सुधामयी।
समता-ममता की मूरत माँ! साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा।।
श्री पौरुष की पर्याय विरल स्वर्णाभ साधनामय हर पल,
संयम जीवन का विरतिचार गंगा की धारा-सा निर्मत्व।
अनुशासन में भी अनुकंपा साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा।।
दी तीन-तीन आचार्यों के, शासन में अद्भुत सेवाएँ,
बौद्धिकता विनयशीलता से, अंकित की सुंदर रेखाएँ।
बेजोड़ प्रबंधन पटुता थी, साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा।।
सीख अबोली मिलती थी, सतियाँ मेहनत सब करो कड़ी,
यदि प्रगति शिखर को छूना है, हो सोच विधायक और बड़ी।
स्वर-स्वर में गूँजे यश गाथा, जय साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा।।
महामहिम श्री महाश्रमण, दौड़े आए दर्शन देने,
पल-पल आध्यात्मिक साज दिया, भव सागर ने नौका खेने।
था परम समाधि में तन त्याग, जय शासनमाता कनकप्रभा।।
लय: बो महाराणा प्रताप कठै---