शासनमाता की स्मृतियाँ चिरकालीन रहेंगी
छापर।
शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी की पहली पुण्यतिथि व होली उत्सव के संयुक्त कार्यक्रम में शासनश्री मुनि विजय कुमार जी ने कहा कि फाल्गुन शुक्ला 14 का दिन तेरापंथ धर्मसंघ के लिए अविस्मरणीय बन गया। एक वर्ष पहले राजधानी दिल्ली में शासनमाता साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी सदा-सदा के लिए अपनी देह का त्याग कर विदेह अवस्था में चली गई थी। होली पर्व पर एक-दूसरे पर रंग लगाने की परंपरा है, किंतु वह कुछ समय के बाद साफ कर दिया जाता है। शासनमाता की स्मृतियाँ चिरकालीन रहेंगी, उनका रंग जो जन-जन के मन पर लगा है, वह कभी उतरने वाला नहीं है।
आचार्यश्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ और आचार्यश्री महाश्रमण तीनों आचार्यों की उन्होंने सेवा की थी। तीनों ही आचार्य उनकी सेवाओं के कारण निश्चिंतता का अनुभव करते थे। उनके व्यक्तित्व और कर्तृत्व को चंद शब्दों में बांधा नहीं जा सकता। आचार्यश्री तुलसी का यह कथन कि साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी की योग्यता आचार्य पद से कम नहीं है, उनकी महानता को प्रतिबिंबित करता है। पूर्ववर्ती सात साध्वीप्रमुखाओं की सभी विशेषताएँ उनके जीवन में मूर्तिमान होती थीं। तभी तो आचार्यश्री महाश्रमण जी ने उनको असाधारण साध्वीप्रमुखा के अलंकरण से सुशोभित किया था। हम अपनी असीम श्रद्धा उनके पावन चरणों में अर्पित करते हैं। वह हमारे से बहुत दूर चली गई हैं। फिर भी हमारी स्मृतियों में सदा जीवित रहेंगी।
होली के संदर्भ में मुनिश्री ने कहा कि भारतीय संस्कृति में पर्वों का एक महत्त्वपूर्ण स्थान है, पर उनमें भी कुछ ऐसे हैं जो जनजीवन से गहराई के साथ जुड़े हुए हैं। उन पर्वों में एक हैµहोली। होली अर्थात् नियति थी वह हो गई, अब क्यों चिंता और तनाव का भार ढोता है। निर्भार जीवन जीने की प्रेरणा इस पर्व में सन्निहित है।
शासनश्री मुनि विजय कुमार जी ने साध्वीप्रमुखाश्री कनकप्रभा जी व होली के संदर्भ में गीत प्रस्तुत किए। मुनि आत्मानंदजी व मुनि हेमराज जी ने भी अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। कार्यक्रम में तेरापंथ सभा अध्यक्ष विजय सेठिया, अणुव्रत समिति सलाहकार रेखा राम गोदारा, ओसवाल पंचायत अध्यक्ष माणक बुच्चा, आचार्य कालू महाश्रमण वेलफेयर ट्रस्ट के मंत्री नरपत मालू, सरोज भंसाली व चंदा बुच्चा ने गीत व भाषण के द्वारा अपनी भावनाएँ प्रस्तुत की। कार्यक्रम का संयोजन अणुव्रत समिति के अध्यक्ष प्रदीप सुराणा ने किया।