शासनमाता आओ---
समणी स्वर्णप्रज्ञा
शस्य श्यामला सरस्वती थी, संघ चंदना वरदायी।
शासनमाता आओ, आंखियां दर्शन पाने तरसायी।।
जीवन सफर बना सुहाना गुरु भक्ति में मस्त रही,
अंतिम श्वासें गुरु चरणों में, आत्मा में विश्वस्त रही,
अमल, धवल, उज्ज्वल, निर्मलतम संयम तेरा फलदायी।
शासनमाता----
कल्पतरु सम छायां दे, अपने पन का अहसास दिया,
मानस मंदिर में हमने, तुमको पूजा का स्थान दिया
ग्रंथों की तुम दिव्य भारती, निर्ग्रन्थी नव सुखदायी।।
गति, मति, धृति से फैली कीर्ति, नारी संस्कृति की तुम शान,
प्रकृति में रहती हरदम उतार-चढ़ाव का नहीं निशान,
सम श्रम शम से सति शेखरे, गण बगिया है महकायी।।
पदयात्रा इतिहास बना, गणपति ने विधिवत् नमन किया,
ज्योतिचरण श्री महाश्रमण ने तुमको संजीवन दिया,
सौभाग्यी किस्मत धारी हम, भिक्षु गण पा हरसायी।।
हाथ पकड़कर चलना सिखाया, ऊपर जाकर भूल गये,
स्वर्गलोक की देव-देवियां, क्या हमसे ज्यादा भायें,
सदा समर्पण, सांसें अर्पण, पद्चिÐों के अनुयायी।।
लय: कलयुग मारे बैठ---