अर्हम
अर्हम
चंदेरी री शुभ्र चाँदनी, साध्वीप्रमुखा गया कठै।
ममता री मूरत गया कठै, समता री सूरत गया कठै।
बण शासणमाता गया कठै।।
सहज समर्पण विनय नम्रता अनुशासन सुघड़ाई ही
हृदय कमल स्यूं वत्सलता री सरिता खूब बहाई ही
इमरत री बै मीठी बूंदा बरसावणिया गया कठै।।
पाँच दशक तक भैक्षव गण में एक सरीखो राज कर्यो
साधु सत्यां श्रावक समुदय रे दिल में हरदम वास कर्यो।
सबने अपणायत रे धागे में बांधण वाला गया कठै।।
प्रचन में गांभीर्य भर्यो सुण महाप्रज्ञ गुरु फरमाता
साध्वीप्रमुखा जद फरमावै पावां म्है नित नूई बातां।
ओजस्वी वर्चस्वी वाणी सिद्ध करणिया गया कठै।।
गंगा सम निर्मल विमल विभा, तुलसी युग री तरुणिम आभा
प्रभु महाश्रमण बरतारे रा हा असाधारण कनकप्रभा
गुरुत्रय री सेवा साझी साता देवणिया गया कठै।।
दिन पर दिन महिनां पर महिनां बीत्या भूल नहीं पावां
मन मोहक छवि निरखण थांरी म्हे सारा ही ललचावां
दर्श दिराओ मत ललचाओ आशा पुरावो आज अठै।।
लय: हल्दी घाटी में समर----