मानव जीवन की सार्थकता अध्यात्म में रमण करना
नोखा।
भौतिकता की चकाचौंध में व्यक्ति दिन-रात भाग-दौड़ कर रहा है। दुर्लभ मानव जीवन को व्यर्थ गँवा रहा है। धन के लालच में अंधा-धुंध भाग-दौड़, पापाचार करके कर्म बाँध रहा है। मानव जीवन की सार्थकता अध्यात्म का जीवन जीना है। धर्म-ध्यान, स्वाध्याय, ध्यान में रमण करके जीवन की कला सीख सकता है-यह उद्गार शासन गौरव साध्वी राजीमती ने तेरापंथ भवन में व्यक्त किए। आगम का वाचन करते हुए साध्वी पुलकितयशा जी ने क्रोध, मान, माया, लोभ, ईर्ष्या को घटाने को कहा। सहिष्णु व शालीनता का जीवन आनंदमय बताया।