साँसों का इकतारा

साँसों का इकतारा

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नई दृष्टि दे युग जीवन में नई चेतना संचारी।
महिमामय उस महापुरुष की सदी बीसवीं आभारी।।

ग्यारह वर्षों की वय में जागा विराग कोमल मन में
गणमाली के संरक्षण में खिला फूल गण-उपवन में
अनुशासित जीवनशैली का असर निहारा बचपन में
बिना प्रशिक्षण सीखा रखना मुनियों को अनुशासन में
अनिमिष रहे देखते सुर-नर जिसकी मुद्रा मनहारी।।

सूरज बनने का सपना ले किरण एक नभ से उतरी
देख स्वाति का योग अचानक आसमान से बूँद गिरी
सागर बनने की उमंग से उठी लहर मन में गहरी
पौरुष की पूजा कर पल-पल दिव्य अर्हता सहज वरी
यौवन की देहरी पर जिसको मिली बड़ी जिम्मेदारी।।

आगम आस्था का आलंबन परंपरा को स्वीकारा
अनेकांत आलोक सहारे बदली चिंतन की धारा
नयनों में दुनिया सपनों की पर यथार्थ ही ध्रुवतारा
आँधी-तूफानों में जिसने नहीं कभी साहस हारा
कठिन कठिनतम अभियानों में रही सफलता सहचारी।।

था चैतन्य सृजन में अनुपम श्रुतदेवी सेवा करती
कलम रोशनी की थी कर में प्रतिभा खुद पानी भरती
गहराई में सागर पीछे सहनशीलता में धरती
उज्ज्वलता आभामंडल की श्रांति कलांति सबकी हरती
रही समर्पित श्रीचरणों में अष्ट संपदा अविकारी।।


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शक्तिपीठ यह नैतिकता का है अपूर्व इसका इतिहास।
मुखरित हैं इसके कण-कण में आस्था के उजले उच्छ्वास।।

सदी बीसवीं के युगनायक तुलसी का कर्तृत्व महान
अणुव्रत का अभियान सामायिक नैतिक मूल्यों का अवदान
जीवनशैली दी अलबेली दिया व्यवस्थित प्रेक्षाध्यान
शिक्षा का आयाम अनूठा प्रायोगिक जीवनविज्ञान
नए-नए नित चाँद उगाए मिला सहज विस्तृत आकाश।।

राजस्थानी शोधपीठ के साथ जुड़ा है तुलसी नाम
शोध सृजन का संगम सुंदर खुलते जाएँ नव आयाम
दिग्दिगंत में सौरभ फैले केंद्र बने अद्भुत अभिराम
निष्ठा जागे विज्ञजनों की हो जाए जग विश्रुत धाम
दिव्य दृष्टियाँ मिले यहाँ से खिले शिशिर में भी मधुमास।।

जन्म सदी की दस्तक दर पे हो कृतज्ञता का इजहार
महाप्रज्ञ की भव्य योजना विजडम वर्ल्ड बने साकार
संयम से व्यक्तित्व बनेगा जन-जन में जागे विश्वास
नैतिकता के शक्तिपीठ पर नई शक्ति का हो आभास
महाश्रमण की मंगल सन्निधि पोर-पोर में भरे उजास।।

(क्रमशः)