कमल पत्र की तरह निर्लिप्त जीवन जीएँ: महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रत

गुरुवाणी/ केन्द्र

कमल पत्र की तरह निर्लिप्त जीवन जीएँ: महामहिम राज्यपाल आचार्य देवव्रत

महामहिम राज्यपाल महोदय ने कहा कि मैं सौभाग्यशाली हूँ कि आज मुझे प्रथम बार आचार्यश्री महाश्रमण जी के दर्शन का अवसर मिला है। आचार्यप्रवर ने हमें जीवन का संदेश दिया है। इस संसार में जितने भी जड़-चेतन पदार्थ हैं, उन सबका कुछ न कुछ उद्देश्य होता है। हमें जो शरीर मिला है, उसका भी एक उद्देश्य है। धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जीवन के विजन के लिए हैं। हिंसा दुःख की जननी है। जीवन में अहिंसा का विकास हो। दया, करुणा की भावना हो यह गुरुदेव ने एक प्रसंग से समझाया। सब प्राणियों के प्रति मैत्री की भावना हो। विद्यार्थियों को भौतिक ज्ञान के साथ अच्छे संस्कार मिलें। काम, क्रोध से आदमी पाप में जा सकता है। हमारे पाप नष्ट हों, ऐसा पुरुषार्थ करते रहें।
मानव देह को पाकर भौतिक चकाचौंध में उलझ गए तो फिर जीवन का कोई उद्देश्य नहीं रहेगा। जीवन जीने के दो मार्ग हैं-प्रेय और श्रेय मार्ग। हमारे जीवन का लक्ष्य धर्म, काम और अथार्जन करते हुए भी मोक्ष है। जीवन में साधन जरूरी है। शरीर साधन है, पर हमारा साध्य मोक्ष टिकाऊ होता है।
हमारी संस्कृति अध्यात्म वाली संस्कृति रही है। बचपन आता है और चला जाता है। यौवन आता है और चला जाता है पर बुढ़ापा आता है तो वह अकेला नहीं जाता; साथ में लेकर जाता है। प्रकृति ने हमें बहुत कुछ दिया है, पर हम प्रकृति का उपयोग त्यागपूर्वक करें। कमल पत्र की तरह निर्लिप्त जीवन जीएँ। सुख-दुःख की परिभाषा है-जिस चीज में हमारी अनुकूलता है वहाँ सुख है। जहाँ पर प्रतिकूलता है वह दुःख है।