आगम पारायण से तत्त्व बोध की प्राप्ति संभव: आचार्यश्री महाश्रमण
शाहीबाग-अहमदाबाद, 18 मार्च, 2023
महावीर वाणी को युगीन बनाने वाले आचार्यश्री महाश्रमण जी के सान्निध्य में जैन विश्व भारती द्वारा प्रकाशित ग्रंथ ‘भगवई-विआहपण्णति’ भाग छः लोकार्पित हुआ। बहुश्रुत धर ने इस प्रसंग पर पावन पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि शास्त्र दसवेंआलियं में बताया गया है-श्रमण धर्म के द्वारा इहलोक हित, परलोक हित और सुगति की प्राप्ति होती है। उस श्रमण धर्म के संदर्भ में ज्ञान होना अपेक्षित है। ज्ञान प्राप्त करने का एक उपाय है-बहुश्रुत की पर्युपासना करो। बहुश्रुत के पास बैठो और प्रश्न करो। अर्थ का निश्चय करो।
हमारे आम वांङ्मय में जो श्रुत है, उसका अच्छे तरीके से पारायण होता है, पारायण करने वाले के पास अपनी प्रज्ञा-प्रतिभा होती है और कोई पारायण कराने वाला भी मिल जाए तो आशा की जा सकती है कि कोई बहुश्रुत बन जाए। मोक्ष मार्ग चर्तुआयामी है-ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप। इनमें ज्ञान का पहला स्थान है। ज्ञान एक पवित्र तत्त्व है। आगम पारायण से तत्त्व बोध की प्राप्ति हो सकती है। आज ‘भगवई विआहपण्णति’ का खंड 6 लोकार्पित हुआ है। हमारे यहाँ 32 आगम सम्मत हैं, उनमें भगवई एक है। मूल पाठ को पढ़कर अर्थ ग्रहण कर सकें तो बहुत ऊँची बात है। पर उस भाषा का ज्ञान होना चाहिए। अनुवाद का भी अपना महत्त्व है।
आगम संपादन की नींव रखने वाले हमारे चतुर्थाचार्य-श्रीमद् जयाचार्य थे। उन्होंने भगवती सूत्र जैसे विशाल ग्रंथ का राजस्थानी भाषा में पद्यात्मक संपादन किया था। आचार्य भिक्षु ने भी अपने गं्रथों में आगम स्वाध्याय का निचोड़ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। ऐसा संभवतः प्रतीत होता है। वर्तमान संपादन का कार्य आचार्य तुलसी के वाचना प्रमुखत्व में हुआ था जो वर्तमान में भी चल रहा है। आचार्य महाप्रज्ञ जी का अपना वैशिष्ट्य था। 32 आगमों का मूल पाठ तो बहुत वर्षों पहले प्रकाशित होकर सामने आ चुका है। फिर ये संस्कृत, छाया, अनुवाद, टिप्पण, भाष्य इस रूप में जो कार्य है, वो कई आगमों का संपन्न हो चुका है। अभी भी कुछ कार्य अवशेष की सूची में हैं।
भगवती की छोटी बहन पन्नवणा है, उसमें भी तत्त्व ज्ञान बहुत है। भगवती आगम के अनुवादन करने वाले में भी अर्हता होनी चाहिए। यह भी एक प्रज्ञा-सरस्वती की साधना है। ज्ञानावरणीय कर्म का क्षयोपशम अच्छा न हो तो आगम-संपादन का कार्य मुश्किल है। जैन विश्व भारती ऐसे ज्ञान के ग्रंथों को द्रव्य रूप में सामने लाने का कार्य कर रही है। यह कार्य भी एक तपस्या, साधना है।
इसका सभी स्वाध्याय करने का प्रयास करें तो बहुत ज्ञान प्राप्त हो सकता है। अब जो थोड़ा अवशेष की स्थिति में कार्य है, वो भी शीघ्र पूरा हो जाए। हमारा प्रयास भी हो। विद्वत एवं वैज्ञानिक लोगों का भी इस पर भाषण हो तो अच्छी जानकारी प्राप्त हो सकती है। अनेक दृष्टिकोणों से आगमों पर चर्चा हो तो नए तथ्य सामने प्रस्तुत किए जा सकते हैं। आगम और विज्ञान दोनों साथ-साथ मिल जाएँ तो नई जानकारी प्राप्त हो सकती है। इस कार्य में जिन्होंने भी निरवद्य योगदान दिया है, वो अनुमोदनीय है। आगम कार्य और आगे बढ़े, ऐसी मंगलकामना है।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि गुरुदेव तुलसी ने तेरापंथ को ऊँचाइयों तक पहुँचाया था। आगम संपादन का उत्कृष्ट कार्य शुरू किया था। सर्वप्रथम दसवेंआलियं आगम का संपादन हुआ था। जब वह आगम विद्वत लोगों के हाथ में गया तो उन्होंने आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी। भगवती सूत्र ज्ञान का महा भंडार है। वर्तमान में पन्नवणा ग्रंथ के संपादन का कार्य साध्वी समाज द्वारा चल रहा है। तेरापंथ की आचार्य परंपरा के कारण तेरापंथ धर्मसंघ का विकास हो रहा है।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि मनुष्य अनेक मशीनों का निर्माण कर सकता है, पर मशीन मनुष्य का निर्माण नहीं कर सकती। हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें मानव जीवन प्राप्त हुआ है, जिसे मूल्यवान बनाने वाला एक अंग है-शरीर। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी ने तीन शरीर बताए हैं-सूक्ष्म शरीर, यशः शरीर और धर्म शरीर। धर्म शरीर से मनुष्य सुखी जीवन जी सकता है।
भगवई खंड-6 के संपादन कार्य में लगे मुनि योगेश कुमार जी ने बताया कि भगवान महावीर ने अध्यात्म विद्या के साथ-साथ वैज्ञानिक विद्या की नींव रखी थी। भगवान महावीर की वाणी में वे तथ्य हैं, जिन्हें हम समझ सकते हैं। उनके तथ्यों में परा मनोविज्ञान है, परमाणु की गति है और गति विज्ञान है। कृष्णा राजि, ज्योतिष विज्ञान, शरीर विज्ञान, जीव विज्ञान आदि अनेक विषयों में जानकारी है। वनस्पति आदि अनेक विषयों पर गहन रहस्य प्रकट किए हैं।
पद्मश्री कुमारपाल देसाई ने कहा कि आचार्यश्री तुलसी एक प्रकाशवान सूर्य थे। स्वप्नदृष्टा और कांतदृष्टा थे। वे अपने स्वप्न महाप्रज्ञ जी को बताते थे। उन्होंने सन् 1955 में आगम संपादन का कार्य शुरू किया था। तेरापंथ में आगमों का संपादन तटस्थता से हो रहा है। जैविभा भी धन्यवाद की पात्र है, जो इतना दुरूह कार्य कर रही है। तेरापंथ धर्मसंघ का सौभाग्य है कि उन्हें ऐसी एक आचार्य परंपरा मिली है।
आचार्य तुलसी और आचार्य महाप्रज्ञ जी इस विश्व के एक आश्चर्य थे। इसरो के वैज्ञानिक नरेंद्र भंडारी ने कहा कि आगमों से हम वो तथ्य जान सकते हैं, जो वैज्ञानिक नहीं जानते। तेरापंथ के आचार्यों ने आगमों का ज्ञान आम जनता तक पहुँचाया है। कितनी मुश्किलों से ये ज्ञान हमें प्राप्त हो रहा है। विज्ञान तो 300-400 वर्ष पहले की बात जानता है, पर भगवान महावीर ने तो 2600 वर्ष पहले वो तथ्य जैन समाज को दे दिए थे। अनेक वैज्ञानिक तथ्य छिपे हैं। कैसे परमाणु से ब्रह्मांड की रचना हुई। इस पुस्तक में कितने सूक्ष्म रूप से समझाया है। प्रश्न यह है कि हम भगवान की वाणी का उपयोग किस तरह कर रहे हैं। आज जैन विद्वानों की कमी है। उसे आगे बढ़ाना जरूरी है।जैन विश्व भारती के अध्यक्ष अमरचंद लुंकड़ आदि ने यह ग्रंथ श्रीचरणों में लोकार्पित किया। व्यवस्था समिति द्वारा पद्मश्री कुमारपाल भाई देसाई व नरेंद्र भंडारी का साहित्य से सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।