जीवन के लिए लाभकारी है साधु की पर्युपासना: आचार्यश्री महाश्रमण
सरदार पटेल सेवा समाज, नवरंगपुरा, अहमदाबाद, 15 मार्च, 2023
चैत्र कृष्णा अष्टमी वर्तमान अवसर्पिणी काल के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभ का दीक्षा दिवस। नए सिरे से वर्षीतप की साधना करने वाले आज से वर्षीतप की साधना शुरू करते हैं। लगभग साधिक तेरह मास का प्रथम वर्षीतप होता है। भगवान ऋषभ ने तो तपस्या की नहीं, हो गई थी। लगभग तेरह माह दस दिन तक प्रभु को आहार ही नहीं मिला था। तीर्थंकर के प्रतिनिधि आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः अहमदाबाद पश्चिम क्षेत्र के मीठारवली-नवरंगपुरा क्षेत्र में स्थित सरदार पटेल सेवा समाज में पधारे। पावन मंगल पाथेय प्रदान करते हुए परम पुरुष ने फरमाया कि साधुओं की पर्युपासना करने से क्या लाभ होता है? हमारी दुनिया में गृहस्थ समाज है, तो साधु समाज भी है।
पूरी सृष्टि में साधु की उपस्थिति करोड़ों में विद्यमान रहती है। तीर्थंकर भी रहते हैं। सृष्टि और मनुष्य जाति का सौभाग्य है कि मनुष्यों में साधु हमेशा रहते हैं। साधु से ही धर्म श्रवण मिल सकता है। साधनासिक्त जितनी आत्माएँ हैं, ऐसी आत्माओं द्वारा जो निश्रवण होता है, ऐसी वाणी का सुनना अपने आपमें अच्छा होता है। श्रवण करने से ज्ञान होता है। ज्ञान से विज्ञान हेय-उपादेय का विवेक प्राप्त होता है। विज्ञान से फिर पाप प्रवृत्ति का प्रत्याख्यान होता है। प्रत्याख्यान से संयम हो जाएगा। संयम होने से आश्रव रुकेंगे। अनाश्रव से तपस्या होगी, तप होने पर व्यवधान-निर्जरा होगी। निर्जरा से आगे योग निरोध की स्थिति होगी, मोक्ष प्राप्ति हो सकेगी। इस तरह साधु की पर्युपासना करने से दस लाभ बताए गए हैं। कल्याण की दिशा में गति कराने वाला बन सकता है।
प्रवचन सुनने से खुद की समस्या का समाधान प्राप्त हो सकता है। आज चैत्र कृष्णा अष्टमी भगवान ऋषभ का दीक्षा कल्याणक दिवस है। आज से नया वर्षीतप शुरू होता है। पूज्यप्रवर ने नए वर्षीतप करने वालों को प्रत्याख्यान करवाए। आज से अखिल भारतीय तेरापंथ महिला मंडल के तत्त्वावधान में ‘जैन धर्मोस्तु मंगलम्’ आयोजित हो रहा है। वीतराग धर्म तो मंगल ही है, वो हमारे भीतर में विकसित हो तो हमारा मंगल हो सकेगा। महिला मंडल के द्वारा कई रूपों में ज्ञान के विकास का उपक्रम चलाया जा रहा है, ये एक श्रुत के विकास में अच्छा उपक्रम है। महिला मंडल द्वारा जैन विद्वान बनाने का सपना साकार हो रहा है। बड़ा ही सुंदर प्रयास है कि ज्ञानी-विद्वतों का निर्माण करने का प्रयास किया जा रहा है।
इस क्रम में तत्त्व ज्ञान की बात आती है। ज्ञान आचरण में आए। ज्ञान का सार आचार है। ज्ञान यज्ञ; यह स्वाध्याय के रूप में है। इसमें आहुतियाँ दी जाती हैं। परिश्रम किया जाता है। महिला मंडल इसे अच्छे रूप से चलाता रहे। जहाँ विकास करना हो; किया जा सकता है। ज्ञान का उपयोग हो तो ज्ञान विकसित हो सकता है। तेरापंथ महिला मंडल इसी तरह समाज की सेवा के साथ स्वयं के कल्याण की दिशा में आगे बढ़ता रहे। साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि जिस व्यक्ति के पास कला होती है, उसे कोई छीन नहीं सकता। सबसे महत्त्वपूर्ण कला हैµजीवन जीने की कला। जैन जीवनशैली की कला आ जाती है, तो सब कलाएँ आ जाती हैं। जो जीवन जीने की कला नहीं जानता, वह पंडित होकर भी अपंडित है। जैन जीवनशैली हमारे जीवन में आ जाए तो हम सम्यक् जीवन जी सकते हैं। जैन जीवनशैली के नौ सूत्रों को विस्तार से समझाया।
अभातेममं की राष्ट्रीय अध्यक्षा ने पूज्यप्रवर की सन्निधि में जैन धर्मोस्तु मंगलम् कार्यशाला की घोषणा की। तत्त्व प्रचेता, तेरापंथ दर्शन प्रचेता जैन स्कॉलर के बारे में विस्तार से बताया। महिला मंडल ने संस्कृत भाषा में गीत की प्रस्तुति दी।
पूज्यप्रवर के स्वागत में सुरेश दक, राजीव छाजेड़, पारसमल कोठारी ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। प्रसिद्ध संत रामभद्राचार्य जी के शिष्य पंडित धीरेंद्र वशिष्ठ ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए और अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।