चित्त की प्रसन्नता सबसे बड़ी उपलब्धि: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

चित्त की प्रसन्नता सबसे बड़ी उपलब्धि: आचार्यश्री महाश्रमण

शाहीबाग-अहमदाबाद, 20 मार्च, 2023
मर्यादा पुरुषोत्तम आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारे जीवन में चित्त की समाधि-चित्त की प्रसन्नता एक अच्छी उपलब्धि होती है। चित्त प्रसन्न है, तो फिर श्रम भी करना पड़े, चिंतन भी करना पड़े, यह शायद ज्यादा कठिन नहीं होता। चित्त अप्रसन्न है, मन आकुल-व्याकुल है, इस स्थिति में श्रम करना भी कठिन हो जाता है। चित्त प्रसन्नता रहना अच्छी भाग्य की बात है। शास्त्र में कहा गया है कि चित्त को विप्रसन्न-विशेष प्रसन्न करें। चित्त को विप्रसन्न करने के लिए अपाय-दोषों को दूर करने का उपाय करें। समस्या होती है तो समाधान भी दुनिया में मिलता है। मृत्यु को आने के लिए भी रास्ता चाहिए। उसके आने के अनेक मार्ग हैं। मृत्यु के लिए कोई भी समय अनवसर नहीं। मौत कभी भी आ सकती है।
लाभ-अलाभ, सुख-दुःख, जीवन- मरण, मान हो या अपमान, निंदा हो या प्रशंसा हर स्थिति में समता रखना उपाय है चित्त को विशेष प्रसन्न रखने का। समता को धर्म कहा है। मुनि समता में रहे। गृहस्थ के जीवन में भी समता का विकास होना चाहिए। अनुकूलता-प्रतिकूलता में सम रहें। पूज्यप्रवर ने अपने दीक्षा से पूर्व के प्रसंग को समझाया। साधु जीवन आनंद का है। गृहस्थ जीवन धोराश्रम है। गृहस्थों के जीवन में तो चिंताएँ ही हैं। साधु के लिए तो परिषह सहना भी तपस्या होती है। अनुशासन में रहना भी हितकर होता है। गुरु के परिताड़न को सहना ऊँची बात होती है। आदमी उन्नति को प्राप्त करता है। हर स्थिति में समता भाव रहे, साथ में मैत्री भाव भी रहे तो विशेष प्रसन्नता की स्थिति प्राप्त हो सकती है।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशा जी ने कहा कि परिवर्तन शाश्वत है। सृष्टि में जीव-पदार्थ में निरंतर परिवर्तन चालू है। परिवर्तन दो प्रकार का होता है-सहज और प्रयास के द्वारा। अध्यात्मवादियों का मानना है कि मनुष्य के स्वभाव में परिवर्तन किया जा सकता है। नीति शास्त्रों का मानना है कि मनुष्य के स्वभाव में परिवर्तन नहीं भी किया जा सकता है। बदलने के दो रूप हैं-कमियों को छिपाना व कमियों को मिटाना। हमें हमारी बुरी वृत्तियों को दूर करने का प्रयास करना चाहिए।

चतुर्दशी-हाजरी का वाचन
पूज्यप्रवर ने हाजरी-मर्यादाओं को वाचन कराते हुए प्रेरणाएँ प्रदान कराई कि हमारे पाँच महाव्रत पाँच अमूल्य हीरे हैं। पाँच समिति और तीन गुप्ति से हम महाव्रतों की रक्षा करें। मोहनीय कर्म रूपी डाकू इन पाँच अमूल्य हीरों को चुरा सकता है। लेख पत्र का वाचन नवदीक्षित साध्वी राहतप्रभा व दो अन्य साध्वियों से करवाया। पूज्यप्रवर ने साध्वी राहतप्रभा जी को 21 कल्याणक बख्शीष कराए। साथ वाली साध्वियों को 3-3 कल्याणक बख्शीष करवाए। सभी उपस्थित साधु-साध्वियों ने पंक्तिबद्ध खड़े होकर लेख-पत्र का वाचन किया।

शासनश्री साध्वी रमाकुमारी जी की स्मृति सभा
पूज्यप्रवर ने शासनश्री साध्वी रमाकुमारी जी का संक्षिप्त में परिचय दिया। वे वर्तमान में साध्वी राजकुमारी जी के सिंघाड़े में हिसार उपसेवाकेंद्र में स्थिरवास में थी। वे मूल नोहर के चोरड़िया परिवार से थीं। चार सगी बहनें व कई नातिले धर्मसंघ में दीक्षित हुए हैं। उनकी आत्मा की आध्यात्मिक प्रगति के लिए तटस्थ भावना से चार लोगस्स का ध्यान करवाया। उनकी आत्मा उत्तरोत्तर प्रगति करते हुए मोक्ष को प्राप्त हो, ऐसी मंगलभावना अभिव्यक्त की।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने उनकी स्मृति में कहा कि तेरापंथ धर्मसंघ एक तेजस्वी धर्मसंघ है। तेजस्विता का आधार है-आचार्य परंपरा। आचार्य भिक्षु ने इस धर्मसंघ की नींवों को गहरा किया। इसका सशक्त स्तंभ है-सेवा। साध्वी रमाकुमारी जी के जीवन प्रसंग बताते हुए कहा कि उनकी संघ और गुरु के प्रति गहरी निष्ठा थी। मुख्यमुनि महावीर कुमार जी ने भी साध्वी रमाकुमारी जी की स्मृति करते हुए उनकी आत्मा के प्रति मंगलकामना अभिव्यक्त की। स्थानीय सभाध्यक्ष कांतिलाल चोरड़िया ने पूज्यप्रवर के स्वागत में अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।