अर्हम

अर्हम

अर्हम
शासनमाता पाकर, भाग्य सराएँ,
तेरी गौरव गाथा युगों-युगों तक गाएँ।

जन्म लेके चंदेरी में, हीरकणी कहलाई
पा0शि0 संस्था में आ, मेधावी बन पाई
कला से कनकप्रभा, गुरु तुलसी पाए।।

पंचदशक प्रमुखा पद को, सजग हो निभाया
अहोभाग्य तेरापंथ का, कण-कण विकसाया
महाश्रमणी संघनिदेशिका, अलंकरण पाए
शासनमाता असाधारण, अलंकरण पाए।।

जीने की कला कोई, तुमसे है सीखे
क्षण-क्षण अप्रमत्त रहकर, पल-पल बीते
वात्सल्य प्रदात्री माँ को, कैसे भुलाएँ।।

अंत समय दिल्ली में साधना केंद्र आए
गुरुवर ने स्वयं चलकर, दर्शन दिराए
गुरुचरणों में अंतिम, समाधि मरण पाए
प्रथम पुण्य तिथि पर गुण हम गाएँ।।

लय: डस गया कोई रे----