अर्हम

अर्हम

अर्हम
शासनमाता रे! गौरव गाथा रे!

गुरुवर गुरुवर रोम-रोम में दिल में भारे वास रे
गुरु दिलवासी ई गण रा रत्ना में ये हां खास।।अं।।

ममतामय आँचल हो भांरो, जो भी आतो पास रे,
सब री सुणता सूझबूझ स्यूं, करतां पूरी आस।।1।।

असाधारण प्रतिभाधारी, रचना में अनूठो रास रे,
पूर्ण समर्पित इंगित पर चल, पायो दिव्य उजास।।2।।

स्वप्ल दिखाया स्वर्णिम कल रा बड़ गई म्हांरी प्यास रे,
अणचिंत्यों ये दृश्य दिखायो, छोड़यो क्यूं ये श्वास।।3।।

समता री उत्कृष्ट साधना, हर स्थिति में अभ्यास रे,
कर्म निर्जराहित अर्पित जीवन रो हर उच्छ्वास।।4।।

श्रेष्ठ लगे हर श्रमणी गण री दियो खुलो आकाश रे,
उद्बोधन दे शक्ति जगाता करतां ओ ही प्रयास।।5।।

सबस्यूं लंबी सेवा गण री, रच्यो नयो इतिहास रे,
गुण मंडित जीवन स्यूं पावां, मैं भी प्रगति प्रकाश।।6।।

लय: मनड़ो लाग्यो रे----