धर्म सारथी बन आया
डॉ0 साध्वी सुधाप्रभा
वीर-प्रभु की जन्म-जयंती, आनंद धन है मंडराया।
माँ त्रिशला का लाल दुलारा, धर्म सारथि बन आया।।
वीरप्रभु के जन्मोत्सव पर, चिहुंदिशि है खुशियाँ छाई।
सिद्धार्थ नृप के घर बजी है, देव-दंुदुभि शहनाई।
जन्मोत्सव पर मेरु नग पर, देवों का टोला आया।।
इंद्रादिक देवों का मन यह शंकित होकर सोच रहा।
होगा सहन जलाभिषेक क्या? चिंतित मानस बोल रहा।
मेरु-पर्वत को कंपित कर, प्रभु ने पौरुष दिखलाया।।
चौसठ इंद्र झुके चरणों में, गौरव-गाथा गाते हैं।
तीर्थंकर महावीर प्रभु को, पाकर मोद मनाते हैं।
नाच रहे मन-मोर सभी के, घर आँगन है मुस्काया।।
दीक्षा लेकर वीर प्रभु ने काटी कर्मों की कारा।
नहीं घबराया कष्टों में भी, धर्म-जगत को वो तारा।
कितनों की नैया को प्रभुवर! तुमने पार है पहुँचाया।।
चंदना का वीर प्रभु ने, निज हाथों उद्धार किया।
चंडकौशिक नाग को भी, बोध देकर शांत किया।
अर्जुनमाली-सा हत्यारा, वीर शरण पा हरसाया।।
महावीर के पदचिह्नों पर हम सब कदम बढ़ाएँगे।
साम्य योग की करें साधना, वीर हम बन जाएँगे।
नमो-नमो महावीर जयंती, उत्सव सबको मनभाया।।
लय: कलियुग बैठा मार---