अर्हम
डॉ0 साध्वी शुभप्रभा
¬ भिक्षु की जय हो, श्रीतुलसी की जय हो,
महाप्रज्ञ की जय हो, महाश्रमण की जय हो।
साँस-साँस में रमा हुआ था गुरुजी नाम निलय हो।।
शिशु सम सहज सरल मनभावन साध्वी रमाकुमारी,
सम, शम, श्रम से सींची जिसने जीवन की हर क्यारी।
तन, मन, वचन, कर्म से होता, सुकृत क्रय-विक्रय हो।।
पाँव-पाँव चलते सूरज की बनी किरण सुखदाई,
श्रद्धा, सेवा और समर्पण मिला सूत्र वरदायी।
गुरु दृष्टि ही सुख की सृष्टि, सबका आत्मालय हो।।
मेरा तेरा तेरा मेरा सुख शांति की कंुजी,
खुले हाथ से बाँटो सबको यही है असली पूँजी।
आगे बढ़ो, चढ़ो शिखरों तक, देती सीख सुनय हो।।
भाग्योदय से पाया हमने महावीर का शासन,
आर्य भिक्षु से महाश्रमण तक तेजस्वी अनुशासन।
क्या पाया है क्या खोया, इस चिंतन में तन्मय हो।।
मौन साधिका शासनश्री की सदा रही परछाई,
उपशांत भाव की कर आराधना कर ली खूब कमाई।
छोड़ अचानक चली गई वे चेतन ज्योतिर्मय हो।।
शासनश्री साध्वी यशोधरा संयम प्रेम शुभंकर,
जागरूक श्रावक समाज का योग मिला श्रेयस्कर।
हिसार उपसेवा केंद्र निराला, सर्वे मंगलमय हो।।
लय: संयममय जीवन हो----