बन गई शिवपुर की राही
साध्वी ऋतुयशा
बन गई शिवपुर की राही।
साध्वी रमाकुमारी ने ली, गण से आज विदाई।।
भाग्योदय से नंदनवन-सा, शासन हमने पाया,
कल्पतरु-सम नेमानंदन, का मंगलमय साया।
मृत्यु महोत्सव बनी तुम्हारी, बाजी यश शहनाई।।
बन गई शिवपुर की राही---।।
ऋजुता-मृदुता, सहज, सरलता, सबके मन को भाती,
मधुरभाषिणी स्वरज्ञज्ञता, रचना नित नई रचाती।
शांत भाव से सही वेदना, श्रमशीला स्वाध्यायी।।
बन गई शिवपुर की राही---।।
कर्मों को ललकारा तूने, हद हिम्मत दिखलाई,
कुल पर स्वर्णिम कलश चढ़ाया, गण सुषमा महकाई।
आज सभी को छोड़ चली, यादों में सदा समाई।।
बन ई शिवपुर की राही---।।
चारों बहनों में सबसे छोटी, साध्वी रमाकुमारी,
शासनश्री से हुई सुशोभित, खिली भाग्य फुलवारी।
बिना बतलाए पता नहीं क्यों? मौत अचानक आई।।
बन गई शिवपुर की राही---।।
लय: जहाँ डाल-डाल पर----