अर्हम
साध्वी कुमुदप्रभा
जहाँ वीर प्रभु का शुभागमन, उस नभ धरती का क्या कहना।
चैत्र शुक्ला त्रयोदशी, उस दिव्य तिथि का क्या कहना।।
सिद्धार्थ कुल के उजियारे, त्रिशला अंगज मोहनगारे।
कुंडलपुर नगरी है प्रमुदित, उस वर्धमान का क्या कहना।।
संगम ने अनगिन कष्ट दिए, समता से प्रभु ने सहन किए।
चंडकौशिक का उद्धार किया, उस क्षमाशूर का क्या कहना।।
मैत्री का श्रोत बहे पल-पल, अपरिग्रह अहिंसा महामंगल।
आग्रह-विग्रह जो दूर करे, उस अनेकांत का क्या कहना।।
तप से चमके कुंदन काया, त्रिभुवन में उत्सव है छाया।
ज्ञानी, ध्यानी, दृढ़-संकल्पी, उस वीर्यवान का क्या कहना।।
महावीर मिले हम सौभागी, किस्मत सारे जग की जागी।
जाति कुल, बल से जो संपन्न, उस कांतमणि का क्या कहना।।
लय: दुनिया में देव---