सम्यक् आचरण के लिए सम्यक् ज्ञान जरूरी: आचार्यश्री महाश्रमण
डभाण खेड़ा, 1 अप्रैल, 2023
व्यावसायिक संबंधी वर्ष का प्रथम दिन। नैतिकता के पुरोधा आचार्यश्री महाश्रमण जी विहार कर प्रातः खेड़ा ग्राम के एच0डी0 पारेख हिंदी स्कूल परिसर में प्रवास हेतु पधारे। मंगल पाथेय प्रदान करते हुए शांतिदूत ने फरमाया कि हमारे जीवन में ज्ञान का बहुत महत्त्व है। अज्ञान अहितकर हो सकता है। अज्ञान कष्ट है। गुस्सा-अहंकार आदि पाप है, पर उनसे ज्यादा खराब अज्ञान है। अज्ञान से आवृत्त चेतना वाला व्यक्ति मेरा हित किसमें, अहित किसमें, इसका भी विवेक नहीं कर पाता है। ज्ञान का फल-सार हैµआचार। जो जाना वो आचरण में कैसे काम आए। हेय-उपादेय ये विवेक है। ज्ञान सम्यक् होगा तो आचरण भी सम्यक् हो सकेगा। हमारे जीवन में सम्यक् ज्ञान का विकास हो, यह एक प्रसंग द्वारा समझाया कि खुद का ज्ञान अच्छा होना चाहिए।
ज्ञान प्रकाश करने वाला होता है। अध्यात्म विद्या का भी ज्ञान हो, जिसे पाकर आदमी राग से विराग की ओर आगे बढ़े। श्रेयों-कल्याणों में अनुरक्त हो जाए। मैत्री से भावित बन जाएँ। वो ज्ञान अध्यात्म का ज्ञान है। इससे तत्त्व का बोध प्राप्त हो सकता है। दुनिया में अनेक विद्यालय, महाविद्यालय, विश्वविद्यालय हैं, जहाँ ज्ञान का आदान-प्रदान होता है। अध्यात्म विद्या में आत्मवाद, कर्मवाद, स्वर्ग-नरक आदि बहुत-सी बातें हैं। कितने धर्म-ग्रंथ दुनिया में हैं, अनेक विषय हो सकते हैं। शास्त्रों का सार भी यही है कि हमारा जीवन अच्छा बने। अहिंसा, मैत्री, सच्चाई का विकास हो। अणुव्रत भी यही सिखलाता है।
धर्म ऐसा तत्त्व है, जिसके द्वारा उद्धार हो सकता है। संन्यासी तो हर कोई न बन सके, परंतु सद्-गृहस्थ सज्जन आदमी बने। अणुव्रत के छोटे-छोटे नियम जीवन में आने से आदमी अच्छा बन सकता है। आदमी के जीवन में धर्म-आचार आ जाए। ज्ञान और आचार दोनों साथ में रहे, यह एक अंधे और पंगु के प्रसंग द्वारा समझाया कि ज्ञान और आचार एक-दूसरे के पूरक बन जाएँ। यह संसार दुखों और संताप की आग है, इससे बचने के लिए ज्ञान और आचार हो तो सर्वदुःख मुक्ति-मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। विद्यालयों में विद्यार्थियों में अच्छे संस्कार आ जाएँ तो अच्छा जीवन जी सकते हैं, विकास की बात हो सकती है। ज्ञान और आचार दोनों सम्यग् रूप से हमारे में पुष्ट रहें।
पूज्यप्रवर का स्वामी नारायण के दो संतों से मिलना हुआ है। खेड़ा में तेरापंथी परिवार भी हैं, सबमें अच्छी भावना रहे। आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का दिल्ली में स्वामी नारायण परिसर में कार्यक्रम भी हुआ था। पूज्यप्रवर ने ज्ञानार्थियों को आशीर्वचन फरमाया। स्वामी नारायण संप्रदाय से स्वामी निर्माणप्रिय जी ने अपनी भावना को अभिव्यक्त करते हुए कहा कि संत मिलन से खुशी प्राप्त होती है। व्यवस्था समिति द्वारा दोनों संतों का सम्मान किया गया। स्थानीय सभाध्यक्ष जयेश चोपड़ा, तेरापंथ महिला मंडल, तेयुप अध्यक्ष जितेंद्र चोपड़ा, ज्ञानशाला प्रस्तुति-समाज सेवक कल्पेश वाघेला ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी। स्कूल परिवार का सम्मान किया गया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।