व्यक्ति को जीवन में निर्अहंकार रहना चाहिए : आचार्यश्री महाश्रमण
भीलवाड़ा, 24 अगस्त, 2021
तेरापंथ के महासूर्य आचार्यश्री महाश्रमण जी ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि आदमी के भीतर अनेक वृत्तियाँ होती हैं। कुछ वृत्तियों को दुर्वृति कहा जाता है। कुछ वृत्तियाँ सुवृत्ति के रूप में होती हैं। जैसे आवेश-गुस्सा करना एक दुर्वृति है। क्षमाशील रहना सुवृत्ति है।
दो प्रकार की वृत्तियाँ सामान्य आदमी में हो सकती हैंं। शास्त्रकार ने प्रस्तुत सूत्र में एक बात बताई है, वह एक दुर्वृति है। वह हैमद-अहंकार। दस ऐसे प्रसंग-स्थान, कारण हैं जिनके संदर्भ में आदमी अपने आपको चरम कोटि का मान लेता है, अहंकार में चला जाता है।
पहला कारण हैजाति का मद-ननिहाल पक्ष का मद। दूसरा कुल का मद, तीसरा बल का मद और चौथा रूप का मद। इनसे अहंकार आ सकता है। तप का अहंकार, श्रुत का अहंकार, लाभ का अहंकार, ऐश्वर्य का अहंकार हो सकता है। नौवाँ मद है कि मेरे पास नागकुमार सुपर्णकुमार देव आते हैं। दसवाँ है कि साधारण पुरुषों के ज्ञान-दर्शन से अधिक अवधि ज्ञान, अवधिदर्शन मुझे प्राप्त हुए हैं। मेरे पास अतीन्द्रिय ज्ञान है। होना यह अच्छी बात होती है, कुछ प्राप्त होने पर भी आदमी घमंड में न जाए। विद्या विनय से शोभित होती है। मैं-मैं का अहंकार न हो कि मैं कितना ज्ञानी हूँ। व्यवहार में किसी प्रकार का घमंड नहीं करना चाहिए। क्षयोपशम है, अनुकूलता है, तो तप में भी आगे बढ़ें पर तप का भी घमंड न आए। सत्ता भी सेवा करने के लिए है न कि सुख-सुविधा के लिए। दूसरों को सुख दें अपनी सत्ता से तो सत्ता उपहार है। वरना सत्ता तो भार है।
राजनीति में तो सत्ता का भरोसा भी नहीं है, आज है, कल न भी हो। उसका घमंड मत करो। कई बार राजा का भी तख्ता पलट हो जाता है। पुण्य का योग है, वो पाप बंध का निमित्त न बने। रूप का भी अहंकार न हो। रूप सुंदर तो पुद्गलों का है, अंदर क्या-क्या पड़ा है, यह सोचें। शरीर की अपेक्षा चेतना पर ध्यान दें। कपड़ों को, बाहर के गहनों को ज्यादा महत्त्व मत दो। ज्यादा महत्त्व भीतरी गुणों को दो। यह एक प्रसंग से समझाया कि बड़े आदमी मेरे कपड़े देखने के लिए नहीं ज्ञान की चर्चा करने आते हैं। ज्ञान पर ध्यान दें।
ज्ञान का बहुत मूल्य है। साधना का बहुत मूल्य है। चेहरे को ज्यादा मत देखो, चारित्र को और ज्ञान को देखो। चेहरे का क्या अहंकार करना। शास्त्रकार ने कहा है कि इन दस बातों का अति अहंकार मत करो। गृहस्थों के पास पैसा-धन होता है, पर उसका अहंकार न करें। पैसे का दुरुपयोग भी मत करें, न उसके प्रति ज्यादा मोह हो। हमें अपने जीवन में जो उपलब्धियाँ प्राप्त है, उनके घमंड से बचना चाहिए। निर्अहंकारता का प्रयास करना चाहिए। जो कुछ जितना प्राप्त है, ज्ञान का, शक्ति का बढ़िया उपयोग जो कर सके करें। अच्छी प्रेरणा लें, आगे बढ़ें यह कामना है।
पूज्यप्रवर ने माणक महिमा की व्याख्या करते हुए फरमाया कि गुरु सा केवलचंद की बात सुनकर संत चिंतित हो गए। गुरुदेव से आगे की व्याख्या करने हेतु निवेदन करने की संत योजना बनाते हैं। मुनि मगनलाल जी की अगवानी में संत मंडल पूज्यप्रवर की निश्रा में पहुँचकर अपने मन की भावना निवेदन करते हैं। माणकगणी ने फरमाया सुविनीता संत धीरज रखें।
पूज्यप्रवर ने तपस्या के प्रत्याख्यान करवाए।
मुख्य नियोजिका जी ने कहा कि जिसकी श्रद्धा अडौल नहीं रहती है, वह अपनी आत्मा का हित नहीं कर सकता। हमारा इतर दर्शनों के प्रति आकर्षण न हो, मूढ़ता के तीन प्रकार बताए गए हैंलोक मूढ़ता, देव मूढ़ता, पाखंड मूढ़ता। सम्यक् दृष्टि का आराधक कभी यह नहीं सोचता कि मैं तीर्थ यात्रा में जाकर नदियों में स्नान कर पवित्र हो जाऊँ। अरिहंत हमारे देव हैं।
साध्वी समताप्रभा जी ने सुमधुर गीत की प्रस्तुति दी।
पूज्यप्रवर की अभिवंदना में कमलेश सिरोहिया, पीयूष रांका, सिद्धि सेठिया, डॉ0 हितेश नौलखा ने अपने भावों की अभिव्यक्ति दी।
कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।