भोग निवृत्ति व त्याग की दिशा में आगे बढ़ें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

भोग निवृत्ति व त्याग की दिशा में आगे बढ़ें: आचार्यश्री महाश्रमण

मुख्य मुनि महावीर कुमार जी बहुश्रुत परिषद के संयोजक मनोनीत
विलक्षण व्यक्तित्व थे आचार्यश्री महाप्रज्ञ

खरौद, भरूच, 16 अप्रैल, 2023
वैशाख कृष्णा एकादशी, तेरापंथ के दशम् महासूर्य, युगप्रधान, प्रेक्षा प्रणेता आचार्यश्री महाप्रज्ञजी के चैदहवें महाप्रयाण दिवस पर आचार्य महाप्रज्ञ जी के अनंत पट्टधर आचार्यश्री महाश्रमण जी ने अपने गुरु के प्रति श्रद्धा भाव समर्पित करते हुए फरमाया कि जीवन अध्रुव है, अशाश्वत है, हमेशा रहने वाला नहीं है। आदमी अपने आप को अमर मानकर निश्चिंत रहता है, परिग्रह में आसक्त रहता है। आदमी को अमरायी नहीं होना चाहिए। कभी न कभी यह अध्याय-पुस्तक संपन्न होने वाली है। यह चेतना भी हमारे में रहनी चाहिए। जीवन को अधु्रव कहा गया है, तो साथ में सिद्धि मोक्ष मार्ग की भी जानकारी करनी चाहिए। इसके लिए मोह से विनिवृत्त होना चाहिए। आयुष्य भी परिमित है, हमें भोग-निवृत्ति और त्याग की ओर आगे बढ़ना चाहिए।
आज वैशाख कृष्णा एकादशी है, परम वंदनीय आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का चैदहवाँ महाप्रयाण दिवस है, तेरहवीं वार्षिकी है। सरदारशहर के गोठीजी ने हवेली के एक कमरे में इस जीवन की अंतिम साँस ली थी। उनकी मुनि दीक्षा भी सरदारशहर में हुई थी। उनके संसारपक्षीय ननिहाल का संबंध भी सरदारशहर था। सरदारशहर में उनका चातुर्मास भी घोषित था, पर उससे पहले ही उन्होंने महाप्रयाण कर दिया। लगभग 90 वर्ष का उनका जीवन-काल रहा। 10 आचार्यों में सर्वाधिक जीवन काल उनका रहा।
वे बाल्यावस्था में ही मुनि बन गए थे। मैंने भी उनको मुनि अवस्था में देखा है। विद्वान संतों में उनका नाम था, वे दार्शनिक मुनि कहलाते थे। उन्हें निकाय सचिव का स्थान दिया गया। वे दीपते मुनि थे। उनकी प्रवचन शैली अच्छी थी। संगान की दृष्टि से उनका गला भी अच्छा था। अंतिम दिन के सुबह में भी उन्होंने प्रवचन दिया था।
गुरुदेव तुलसी ने उनको बहुत सम्मान दिया था तो आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का विनय भाव भी गजब का था। गुरु-शिष्य का अजब व्यवहार था। उनको कई भाषाओं का ज्ञान था। आगम-संपादन में उनका बड़ा योगदान रहा। मुझे तो उनके चरणोत्पात में लगभग तेरह वर्षों तक युवाचार्य रूप में रहने का अवसर मिला था। वे अच्छे चिंतक-विचारक व्यक्तित्व थे। उनमें गांभीर्य भी था। वे ज्ञानी और गहरे व्यक्तित्व थे। उन्हें मेरे पर बहुत कृपा व विश्वास तथा वात्सल्य था। गुरुदेव तुलसी के महाप्रयाण के बाद जल्दी ही उन्होंने अपना भावी उत्तराधिकारी सौंप दिया था। मैं आज उनको भावपूर्वक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूँ। उनकी स्मृति में मैंने एक गीत भी बनाया है-‘गुरुवर महाप्रज्ञ की, स्मृति से मानस ऊर्जामय हो।’ पूज्यप्रवर ने गीत का सुमधुर संगान करवाया।
एक महान व्यक्ति आज के दिन चले गए। जैन शासन पर उनका बड़ा उपकार है। उन्होंने अहिंसा यात्रा भी की थी। उन्होंने धर्मसंघ का कितना विकास किया था। पूज्यप्रवर ने महत्ती कृपा करते हुए मुख्य मुनि महावीर कुमार जी को बहुश्रुत परिषद् के संयोजक के रूप में स्थापित किया। हम हमारे जीवन में सद्गुणों को संचय करने का प्रयास करें। हम गुणों का विकास करते रहें, यह काम्य है। बहुश्रुत परिषद् के नवीन संयोजक डाॅ0 मुख्य मुनिश्री ने कहा कि आज आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी का चरमोत्सव का दिन है। वे प्रज्ञा संपन्न थे। उन्हीं की धर्मसंघ को देन है आचार्यश्री महाश्रमण जी। गुरु अपने शिष्यों के निर्माण में बहुत श्रम करते हैं। अपना सारा जीवन समर्पित कर भी गुरु के ऋण से उऋण नहीं हुआ जा सकता है। गुरुदेव ने आज जो दायित्व मुझे दिया है, मैं गुरुदेव से यह आशीर्वाद चाहता हूँ कि मैं भी बहुश्रुत बन सकूँ।
पूज्यप्रवर ने फरमाया कि भगवती जोड़ का स्वाध्याय बहुश्रुत का साधन है। जब इसकी व्याख्या चलती है, तो मुख्य मुनि और साध्वीवर्या भी साथ बैठी रहती हैं। पारायण होने से ज्ञान को और विकसित होने का मौका मिलता है। हमारे धर्मसंघ में श्रुत का भी विकास होता रहे। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि बालक नथमल में अनेक प्रकार की संभावनाएँ थीं। उन संभावनाओं को उजागर किया पुज्य कालूगणीजी ने। गुरुदेव तुलसी ने मुनि नथमल जी की क्षमताओं को पहचाना और धीरे-धीरे आगे बढ़ाया। मुनि नथमलजी के पास विनय भाव था और वे आगे बढ़ते गए। उनकी प्रज्ञा धीरे-धीरे जागृत हुई और विद्वत जगत उनकी प्रज्ञा का कायल था।
साध्वीवर्या सम्बुद्धयशाजी ने मुख्य मुनि महावीर कुमार जी को वर्धापित करते हुए कहा कि गुरुवर ने मुख्य मुनि को बहुश्रुत परिषद् का संयोजक बनाकर हमें कृतार्थ किया है। हम आपके निर्देशन में निरंतर आगे बढ़ते हुए सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दर्शन, सम्यक् चारित्र की वृद्धि करते रहें। हम मुख्य मुनि के प्रति भी मंगलकामना करते हैं कि ये अपनी बहुश्रुतता को और विकसित करते रहें। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने भी मुख्य मुनि को मंगलकामना प्रदान करते हुए कहा कि पूज्यप्रवर ने हमारे धर्मसंघ में जो पद रिक्त हो गया था वो भर दिया है। मैं आपके प्रति मंगलकामना करती हूँ कि आपका जीवन ज्ञान और साधना-संपन्न बने। गुरुवर की जो दृष्टि हो उस अनुरूप कार्य करते हुए आगे बढ़ते रहें। सबको प्रेरणा देते रहें। मुख्य मुनि को वर्धापित करते हुए मुनि धर्मरुचि जी, मुनि कुमार श्रमण जी, मुनि विश्रुत कुमार जी, मुनि कीर्तिकुमार जी, साध्वी मुदितयशा जी, साध्वी श्रुतयशा जी, साध्वी शुभ्रयशा जी, मुनि रजनीश कुमार जी, मुनि जितेंद्र कुमार जी, मुनि मनन कुमार जी, मुनि योगेश कुमार जी, मुनि ऋषभ कुमार जी, मुनि मृदु कुमार जी, मुनि राजकुमार जी, मुनि कोमलकुमार जी, मुनि दिनेश कुमार जी एवं मुनि वर्धमान कुमार जी ने अपनी मंगलभावनाएँ संप्रेषित की।
साध्वीवृंद द्वारा समूह गीत की प्रस्तुति हुई।
पूज्यप्रवर के स्वागत में स्कूल के संचालक मोहम्मद भाई पटेल ने अपनी भावना अभिव्यक्त की। व्यवस्था समिति द्वारा उनका सम्मान किया गया। साध्वी लब्धिश्री जी ने आज पूज्यप्रवर के दर्शन किए। उन्होंने अपनी भावना अभिव्यक्त की। तेरापंथ किशोर मंडल, सूरत प्रेक्षाध्यान प्रशिक्षिकाएँ, वंदना डांगी एवं ज्ञानशाला की प्रस्तुति हुई। बालक तन्मय जो सूरत से है, उन्होंने अपनी दीक्षा की भावना श्रीचरणों में अभिव्यक्त की। पूज्यप्रवर ने उसे संतों के साथ रहने का आदेश फरमाया। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।