परमाराध्य आचार्यश्री महाश्रमणजी के जन्मोत्सव एवं पट्टोत्सव के उपलक्ष्य में कविता
साध्वी योगक्षेमप्रभा
वीतराग आभा मनहारी, पूनमचंदा ज्यों मुखमंडल।
जन-जन को आकर्षित करता देव तुम्हारा आभामंडल।।
नयनयुगल इमरत का दरिया,
हृदय प्रेम की अविरल धारा।
चरणयुगल में जो भी आता,
मिलता उसको सबल सहारा।
मनमोहक आशीर्वर मुद्रा, खिल जाते दो कर ज्यों उत्पल।।
पीर हरण करने तुम जग की,
शांत सुधारस बरसाते हो।
व्यथा-कथा सुन मानव मन की,
करुणा जल से सरसाते हो।
सुखकर्ता हो, दुःखहर्ता तुम, सन्निधि तेरी शिवकर संबल।।
गुरु तुलसी की वरद कृपा से,
महाश्रमण है हमने पाया।
महाप्रज्ञ गुरुवर ने जिनको,
पावन पट्टधर पद बक्शाया।
उभय गुरु का सिरजन मनहर, बरते तेरापथ में मंगल।।