अर्हम्

अर्हम्

अर्हम्

करें हम वर्धापन शत् बार।
दीक्षा कल्याणक उत्सव पर भू-नभ एकाकार।
दिव्य-लोक-सी छटा देखकर विस्मित् है नर-नार।।

गंगाजल-सा पावन जीवन,
हरता जन मानस की उलझन,
भरता सबमें अभिनव पुलकन,
ज्योतिर्मय आभामंडल से ज्योतित है संसार।।

श्रुत-रत्नों के तुम हो आकार,
धीरज का लहराता सागर,
उपशम रस की छलके गागर,
बहुविधि कार्यों को संपादित करते बन निर्भार।।

जो प्रेरक प्रवचन को सुनते,
चिंतन के वातायन खुलते,
जीवन का रूपांतर करते,
राजनयिक, बौद्धिक जन पाते पथ दर्शन सुखकार।।

सद्भावों की फसल उगाई,
नैतिकता की अलख जगाई,
नशामुक्ति की राह दिखाई,
गाँव-नगर-ढाणी-घाटी में गूँजी जय-जयकार।।

जिधर तुम्हारे चरण टिकेंगे,
कदमताल हम साथ बढ़ेंगे,
सपनों में हम रंग भरेंगे,
शासन-हित का काम पड़े तो हर पल हैं तैयार।।

लय: निहारा तुमको कितनी---