आचार्यप्रवर के दीक्षा अमृत महोत्सव के संदर्भ में
उजला उजला आज प्रभात लेकर आया नव सौगात।
अवनि खुशियों में गाए रे, हो चाँद सितारे तुमको बधाएँ रे।।
सातों ही अम्बर में गूँजे गौरव गाथा प्रभुवर की,
सात समंदर पार पहुँची महिमा शासन शेखर की,
मुस्काते खिलते जलपात, सुनकर अभिनंदन की बात।।
युगप्रधान श्री महाश्रमण के चरण टिके जिस धरती पर,
हर्षित पुलकित झूमे कण-कण पाकर वर्धापन अवसर,
मानो मरुधर में मंदार, हर मौसम में नई बहार।।
संयमश्री का अमृत महोत्सव, करें सुधारस पान है,
कुशल नियंता नेमानंदन, गण स्पंदन गतिमान है,
गण के भाग्य बड़े बलवान, पाये गणमाली मतिमान।।
युगों-युगों तक विभुवर तेरी शाश्वत सन्निधि हम पाएँ,
कलानिधे तब काम्य कौमुदी मिली हमें मिलती जाए,
अंतरमन के हैं उद्गार, अर्पित साँसों का संसार।।
लय: नीले घोड़े रा असवार-----