अर्हम
अर्हम
मस्त फकीरी या था कि अमीरी
समझ नहीं कुछ आता
जो भी आता चरणों में
माथा उसका झुक जाता।
क्या जादू है नयनों में?
या मंत्र जपा अलबेला,
देख रही हूँ इस दर पे
रहता है हरदम मेला।
है अचरज की बात
तुम्हारा मौन बोलती भाषा,
शब्दों की बैसाखी के बिन
दे देता परिभाषा।
तन में बड़ी नजाकत मानो
मोहक फूल कमल सा,
पर संकल्प प्रबल
झंझावातों में धरणीधर सा।
प्रभो! विरोधी युगलों का
समवाय तुम्हारे भीतर,
नमन करूँ मैं इन युगलों को
भंते! प्रातः उठकर।