‘गण गगनांगण गगनमणि’

‘गण गगनांगण गगनमणि’

गण गगनांगण गगनमणि प्रभुवर को आज बधाएँ।
जन्मोत्सव, पट्टोत्सव प्रभु का, हम सब आज मनाएँ।।

जन्मोत्सव प्रभुवर का गण में, बाँट रहा उजियारा।
स्वर्ग-धरा पर आज है उतरा, चमका भाग्य सितारा।
माँ नेमा के ललना की हम, गौरव गाथा गाएँ।।

पुण्यधरा सरदारशहर में, जन्म हुआ था प्रभुवर का।
राजतिलक भी यहीं हुआ था, एकादशवें गुरुवर का।
संयम-भू सरदारशहर को, हम सब शीश झुकाएँ।।

माँ नेमा की रत्न-कुक्षि से, बालक मोहन आया।
मोहन से मुनि मुदित और महाश्रमण वही कहलाया।
महाश्रमण गणनाथ बने सब, अपना भाग्य सराएँ।।

भिक्षु-गण के हे गणमाली, तुलसी-सा है उणिहारा।
महाप्रज्ञ-सी प्रज्ञा तेरी, चमक रहा बन ध्रुवतारा।
पंचम अर के तीर्थंकर सम गुरुवर मन को भाए।

चिदानंद चैतन्य रूप प्रभु तव चरणों में समर्पण है।
वात्सल्यमयी पा दृष्टि तेरी, प्रमुदित गण का कण-कण है।
सम्यग् दर्शन, ज्ञान, चारित्र के, वर्धन का वर पाएँ।।

क्रोड दीवाली राज करो तुम, करो संघ का संवर्धन।
रहो निरामय हे अखिलेश्वर, प्रतिपल हो आनंद वर्षण।
ज्योतिचरण के जयनारे से, नभ-धरती गूंजाए।।

लय: जनम-जनम का----