गुरु महाश्रमण को वंदन है
प्राणों से प्यारे, मनहारे, गुरु महाश्रमण को वंदन है,
दीक्षा कल्याणक उत्सव पर प्रमुदित धरती का कण-कण है।।
छोटी वय में दीक्षा लेकर, अपने जीवन को चमकाया,
मंत्री मुनि को सौभाग्य मिला, यश सौरभ से सुरभित गण है।।1।।
करुणा से भरा समंदर है, सबको सच्चा पथ दिखलाते,
सरसाते सबके जीवन को, मुस्काता मानो मधुवन है।।2।।
हिंदू हो मुस्लिम-सिक्ख भले, इन चरणों में जो भी आता,
वह पाता प्रभु का पथ दर्शन, जुड़ता उससे अपनापन है।।3।।
मंगलमय वचनों के द्वारा, हरते हैं पीड़ा जन-जन की,
गंगा ज्यों पावन जीवन है, करते सबका हितचिंतन है।।4।।
मानो जिनवर साक्षात् ‘विजय’, है जागरूक जीवनशैली,
क्षण-क्षण का करते सदुपयोग, करते आत्मा का शोधन है।।5।।
लय: दुनिया से सहारा क्या लेना---