अर्हम्

अर्हम्

भगवान महावीर ने बहुश्रुत मुनि को महत्त्व दिया है। उत्तराध्ययन सूत्र का ‘बहुश्रुतपूजा’ इसका साक्षी है। तेरापंथ के आचार्यों ने इसी परंपरा का निर्वहन किया है। हमारे आचार्यों ने बहुश्रुतों को एक अनमोल रत्न के रूप में स्वीकारा है। इसका एक प्रमाण हैंµआगम मनीषी मुनिश्री महेंद्र कुमार जी स्वामी। मुनिश्री महेंद्र कुमार जी स्वामी ने गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी के द्वारा संयम रत्न ग्रहण किया। उन्होंने ज्ञान के क्षेत्र में विशेष प्रगति की। मुनिश्री एक कर्मठ संत थे। आचार्यश्री तुलसी, आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी तथा वर्तमान आचार्यश्री महाश्रमण जी के शासनकाल में हमने उनकी कर्मजा शक्ति के दर्शन किए हैं। तेरापंथ धर्मसंघ में चल रहे आगम कार्य में उनका असाधारण योगदान रहा है। वस्तुतः वे एक अत्यंत उपयोगी तथा विलक्षण संत थे।
शासन गौरव मुनिश्री ताराचंद जी स्वामी के साथ भी बहुश्रुत मुनिप्रवर के अत्यंत मधुर संबंध रहे। उन्होंने मुनिश्री को कुछ साधना के प्रयोग सुनाए थे जो साधक मुनिवर की साधना सिद्धि में उपयोगी रहे। मुझ पर भी मुनिश्री का पूर्ण कृपाभाव रहा। मुनिश्री को सहयोगी संतों का भी अच्छा योग मिला। मेरे सहदीक्षित मुनि अभिजीत कुमार जी स्वामी ने उनकी खूब सेवा की है। मुनिश्री के देहावसान से धर्मसंघ में जो रिक्तता आई है, विश्वास है कि मुनि अभिजीत कुमार जी उसे भरने का प्रयास करेंगे। मुनि जम्बू कुमार जी, मुनि जागृत कुमार जी, मुनि सिद्धकुमार जी धन्य हैं, जिन्हें बहुश्रुत मुनिप्रवर की सेवा का दुर्लभ योग मिला। हम सभी संत दिवंगत मुनिप्रवर की आध्यात्मिक उत्थान की मंगलकामना करते हैं।