अर्हम्

अर्हम्

रह गई है जी मन की मन में ना हुए गुरु दीदार।
शासनश्री मुनि प्रवर क्यंु
यूं छोड़ गए संसार।।ध्रुव।।

मुंबई में पले बढ़े जो,
मुंबई में किया प्रयाण,
जिन-दर्शन जिन आगम का, किया विशद् प्रचार।।1।।

महेंद्र मुनि श्री ज्ञाता, थे इक्कीस भाषाओं के,
वैदुष्य अतुल्य तुम्हारा,
कोई पा ना सकेगा पार।।2।।

तुम ज्ञान और सहजता
के अनुपम संगम थे,
आधुनिक और पौराणिक जोड़े दोनों ही तार।।3।।

लो हे मनीषा मुनि लो,
सौ सौ श्रद्धांजलि,
मुनि सुरेश अमर रहेंगे मुनिवर के सदा विचार।।4।।

लय: प्रभु पाश्र्व देव चरणों में---