अर्हम

अर्हम

कितने सुंदर सपने संजोये, स्वागत के बीज बोये।
सिंचन के वक्त किया प्रस्थान है।
हो मुनिवर! थोड़ा रुकते आ रहे भगवान हैं।।टेक।।

बहुश्रुत परिषद् के संयोजक, ह्यूमन कम्प्यूटर थे।
अष्टादश भाषाविद् लेखक, वक्ता प्रोफेसर थे।
चलती साँसों के साथ लेखनी, चाहे दिन हो या रजनी।
अर्हत् वाणी में बसते प्राण हैं।।

अज्ञानी रोगों ने अंतिम दम तक साथ न छोड़ा।
किंतु मनीषी आत्मवान ने खुद से खुद को जोड़ा।
अनुपम ज्ञाता विज्ञाता मुनिवर, संबोधि दाता मुनिवर।
विद्वानों में ऊँची पहचान है।।

श्रम संयम समता की बही त्रिवेणी अंग-अंग में।
थे सर्वांग समर्पित खूब रंगे शासन के रंग में।
तीनों गुरुओं की कृपा बरसती, खिल जाती मन की धरती।
शिक्षण रथ रहा सदा गतिमान है।।

इंतजार में हैं उत्कर्ष और उत्थान सहोदर।
जनक बीच में चले गए हैं। दिल में दर्द छोड़कर।
सूना सूना है मन का कोना, चुप क्यों हो गए कहो ना।
वाणी सुनने को आतुर कान हैं।।

दीर्घ तपस्वी सेवाभावी अजित मुनि मतिशाली।
जम्बू अभिजीत जागृत सिद्ध मुनि उस तरु की डाली।
चमका बनकर जो संघ सितारा अब यादों का उजियारा।
‘सोमा’ का भाव भरा संगान है।।

लय: सखियों रहकर---