अर्हम्

अर्हम्

गुरुवर चरणों में अर्पण, जीवन उपवन महकाया।
प्राणों की हर धड़कन में, समता सागर लहराया।।

गुरुवर तुलसी की करुणा, संयम का रत्न मिला था।
बी0एस0सी0 प्रथम प्रथम थे, हर दिल का कमल खिलाया।
अनुशासन विनय समर्पण, गणिवर आशीर्वर पाया।।

गुरु तुलसी महाप्रज्ञ के, हर इंगित पर खुशहाली।
प्रेक्षा प्राध्यापक मुनिवर, वात्सल्य दिया गणमाली।
जो पास आपके आया, उसको भी है चमकाया।।

आगम स्वाध्याय निरंतर, गहरे आगम विज्ञाता।
गुरु महाश्रमण अनुकंपा से आगम अनुसंधाता।
वैज्ञानिक मस्तिष्क तुम्हारा, आध्यात्मिक दीप जलाया।।

बहुश्रुत परिषद् संयोजक, सेवाएँ अमर रहेंगी।
तेरापंथ गण गौरव में, प्रेरक बनकर निखरेंगी।
गुरुवर आने तक रुक जाते हर दिल ने दर्द सुनाया।।

मुनि अजित कुमार, मुनि जम्बू, मुनि अभिजीत है सौभागी।
मुनि जागृत, सिद्ध मुनि सब सेवा में थे अनुरागी।
विद्वद्वरण्य ज्ञानी तुम, गुरुवर आशीर्वर पाया।।

मुंबई में जन्मे मुनिवर, अंतिम क्षण मुंबई में आया।
सुविनीत, समर्पित जन-जन सन्निधि में नित हरसाया।
हे! रत्नत्रय आराधक! हम सबने शीष नवाया।।

लय: ए मेरे वतन के लोगों---