अर्हम्

अर्हम्

आगम मनीषी मुनिप्रवर ने किया अंतिम उपकार।
सबके दिल पर छाप छोड़ी ज्ञान गुण भंडार।।

किसने सोचा गुरु दर्शन की पूरी न होगी चाह।
इतनी जल्दी क्या थी मुनिवर पकड़ी जो अगली राह।
गुरुवर मुंबई-आ रहे कुछ कर लेते इंतजार।
(गंगा घर में-आ रही कुछ कर लेते इंतजार) आगम---।।

धर्मसंघ को शिक्षण प्रशिक्षण देते थे दिल खोल।
आर्हत् वाङ्मय का किया था काम बड़ा अनमोल।
तीनों गुरु के-थे हमेशा पूरे मर्जीदार।। आगम---।।

बहुश्रुत परिषद् के संयोजक तुम पर सबको नाज।
करें समर्पित श्रद्धांजलियाँ बोझिल मन से आज।
गण समंदर-का इक हीरा पहुँचा स्वर्ग मझार।। आगम---।।

लय: मेरा जीवन----