अर्हम्

अर्हम्

श्रद्धा सुमन चढ़ाएँ।
बहुश्रुत परिषद् के संयोजक क्या गुण गरिमा गायें।।आ0।।

मोहमयी मायानगरी मुंबई में जन्म तुम्हारा।
जेठाभाई के सुपुत्र ने कुल का नाम उजारा।
गुरु तुलसी करकमलों से पावन संयमश्री पाये।।1।।

इंगलिश भाषा पर कमांड संस्कृत प्राकृत के ज्ञाता।
थे प्रकांड विद्वान गूढ़ तत्त्वों के तुम व्याख्याता।
आगम मनीषी प्रेक्षा प्राध्यापक मुनिवर कहलाए।।2।।

था मजबूत मनोबल बाधित कार्य कभी न हो पाया।
रहते धीरे आगमों से आगम ही मन को भाता।
था विश्राम, काम ही बस, कृतकाम तभी हो पाये।।

हे उपकार अनंत संघ का हम पर भूल न जाना।
तुलसी महाप्रज्ञ से मिल फिर लौट पुनः यहाँ आना।
गुरुवर महाश्रमण दर्शन की इच्छा पूर्ण कराएँ।।

गुरु त्रय की अनुपम अनुकंपा उच्च स्थान दिलाया।
गुरु इंगित आराधन से जीवन को सफल बनाया।
शीघ्र वरो मंजिल हम सब मिल यही भावना भाएँ।।

लय: संयममय जीवन हो---