भौतिकता के लिए आध्यात्मिकता को न छोड़ें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

भौतिकता के लिए आध्यात्मिकता को न छोड़ें: आचार्यश्री महाश्रमण

असूर्या/लुवारा, भरूच, 13 अप्रैल, 2023
अध्यात्म के महासागर आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः लगभग 10 किलोमीटर का विहार कर असूर्या के गुरुद्वारा के परिपाश्र्व में पधारे। शांतिदूत ने पावन प्रेरणा देते हुए फरमाया कि एक विचार है कि थोड़े लाभ के लिए अधिक नुकसान नहीं उठाना चाहिए। बुद्धिमान व्यक्ति जिसमें लाभ हो वह काम करे। इसे एक दृष्टांत से समझाया। आदमी झूठ-कपट करके थोड़ी कमाई कर लेता है, पर उससे कर्म बंधे वह कितना बड़ा नुकसान है। एक साधु ने महाव्रत ले रखें हैं, जो मोक्ष तक पहुँचाने वाले हैं। अगर वह कमजोरी से उनको छोड़ देता है, तो वह एक करोड़ देकर एक कोड़ी को खरीदता है। निदान करने से भी साधना-तपस्या की संपत्ति निष्तेज बन सकती है। अध्यात्म के फल से वंचित हो सकता है।
गृहस्थ जीवन में भी जुए में आदमी कितनी संपत्ति का नुकसान कर लेता है। श्रावक का श्रावकत्व भी अमूल्य पूंजी है। भौतिकता के लिए आध्यात्मिकता को न छोड़ें। मानव जीवन भी बहुत कीमती समय है, अवसर है, उसका अगर कोई लाभ नहीं उठाए तो मानव जीवन को व्यर्थ में ही खो देगा। बड़े लाभ से वंचित रह जाएगा। जो प्राप्त धर्म को छोड़कर अधर्म लोक भोग की आशा वाले भोगों की ओर दौड़ते हैं, वह कल्पवृक्ष को अपने घर से उखाड़कर धतुरे का पौधा अपने घर में लगाता है। चिंतामणि रत्न को फेंककर काँच का टुकड़ा उठाकर जेब में डाल लेता है। उत्कृष्ट हाथी को बेचकर गधा खरीदता है। ऐसे आदमी मूढ़ होते हैं, नासमझ होते हैं।
अणुव्रत अच्छे जीवन जीने की प्रेरणा देता है। दुर्जन मत बनो, सज्जन आदमी बनो। बड़े पाप तो मत करो। अच्छे गुण जीवन में आ जाएँ तो मानव जीवन सार्थक, सफल बन सकता है। अभी मानव जीवन प्राप्त है, उसका लाभ उठाने का एवं उसका उपयोग करने का प्रयास करना चाहिए। अच्छी साधना करने का आदमी को प्रयास करना चाहिए। आचार्यश्री महाप्रज्ञजी तो बालावस्था में साधु बन गए थे। कितना लंबा उनका संयम पर्याय था। गृहस्थों की पूंजी तो साधना की पूंजी के सामने बहुत ही कम महत्त्व वाली संपत्ति होती है। ज्ञान, दर्शन, चारित्र की संपत्ति तो उच्च कोटि की संपत्ति है, जो आगे भी काम आने वाली है। थोड़े लाभ के लिए बड़ा नुकसान नहीं उठाना चाहिए।आज यह गुरुद्वारे का परिपाश्र्व है, धर्मों के अपने-अपने स्थान होते हैं। सद्गुरुओं से सद्ज्ञान मिले। आदमी धर्म के क्षेत्र में आगे बढ़े। कार्यक्रम का संचालन करते हुए मुनि दिनेश कुमार जी ने समझाया कि जीवन में सहिष्णुता का होना बहुत जरूरी होता है।