अपनी आत्मा को अपना मित्र बनाएँ: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

अपनी आत्मा को अपना मित्र बनाएँ: आचार्यश्री महाश्रमण

भरूच, 14 अप्रैल, 2023
नर्मदा नदी के किनारे बसा गुजरात का एक औद्योगिक नगर भरूच। अणुव्रत अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमण जी अपनी धवल सेना के साथ अणुव्रत यात्रा के दौरान भरूच शहर में पधारे। पूज्यप्रवर का विहार लगभग 13 किलोमीटर का हुआ। अंकलेश्वर इसी शहर से जुड़ा हुआ है। युगप्रधान आचार्यश्री महाश्रमण जी ने मंगल देशना प्रदान करते हुए फरमाया कि हमारी दुनिया में मित्र भी देखने को मिलते हैं। शास्त्रकार ने कहा है कि पुरुष! तुम अपने मित्र स्वयं हो, फिर बाहर मित्र क्या खोज रहे हो। निश्चय नय के संदर्भ में एक संदेश दिया गया है, जो बड़ा पारमार्थिक भी प्रतीत होता है। आत्मा की सद्प्रवृत्ति अपना मित्र बन जाती है और आत्मा जो दुष्प्रवृत्ति में लगी है, वह खुद की शत्रु बन जाती है। आत्मा ही अपना बंधु या रिपु है। बाहर की दुनिया के भी मित्र होते हैं, उनके छः लक्षण बताए गए हैं। एक मित्र अपने मित्र को अपेक्षा होने पर अपनी चीज दे देता है या ले भी लेता है। अपनी गुप्त बात का आदान-प्रदान कर लेता है। खाना मित्र से खा लेता है या उसको खिला भी देता है।
अध्यात्म शास्त्र में आत्मा मित्र है। जब हम अहिंसा धर्म में हैं, ईमानदारी के प्रति निष्ठावान हैं, इंद्रिय-संयम है, क्षमा और आर्दव भाव है। ऋजुता, सरलता है, संतोष का भाव है, तो आत्मा मित्र है। अगर आत्मा हिंसा में प्रवृत्त है, झूठ-चोरी व इंद्रिय-असंयम में प्रवृत्त है, गुस्से और अहंकार में है, छल-कपट व लोभ-लालच में है, तो आत्मा हमारी शत्रु है। धर्म का संदेश है कि हम अपनी आत्मा को अपना मित्र बनाने का प्रयास करें। बाहर के मित्र काम में आ भी सकते हैं या फिर न भी आएँ। कारण अपने कर्म स्वयं को ही भोगने पड़ते हैं। स्वयं की आत्मा को इतना अच्छा मित्र बना लें कि कल्याण की दिशा में प्रवर्धमान हो सकें। अहिंसा, सद्भावना, नैतिकता आदि के तत्त्व हैं, ये अपनी आत्मा को अपना मित्र बनाने के प्रयास में सहायक होते हैं।
अणुव्रत, प्रेक्षाध्यान और जीवन विज्ञान आत्मा को मित्र बनाने वाले तत्त्व हैं। अणुव्रत यात्रा में यही समझाने का प्रयास कर रहे हैं कि आदमी की चेतना अच्छी बने। व्यवहार में भी धर्म रहे। यह एक प्रसंग से समझाया कि अब तक तो तुम मेरे साथ खाना खाते थे, आज से मैं तेरे साथ खाऊँगा। परिवारों में भी शांति रहे। किसी के साथ छल-कपट न करें। जीवन में प्रामाणिकता, ईमानदारी, अहिंसा रहे। हम अपने मित्र बनने का प्रयास करें। आज भरूच आए हैं, सभी में अहिंसा, संयम, नशामुक्ति, सद्भावना की चेतना रहे। आज नेपाल देश का नया वर्ष शुरू हो रहा है, पूज्यप्रवर ने नेपालवासियों को विशेष मंगल पाठ सुनाया। साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभाजी ने कहा कि आचार्यप्रवर का विराट व्यक्तित्व है। वह विराट व्यक्तित्व ही जन-जन को अपनी ओर खींच रहा है। आचार्यप्रवर के मन में मानव मात्र के कल्याण की भावना निहित है। जो व्यक्ति परोपकार से अपनी आत्मा को भावित कर लेता है, तो लोग चुंबक की तरह पूज्यप्रवर की ओर खिंचे चले आते हैं। बहुश्रुत परिषद् के संयोजक मुनि महेंद्रकुमार जी के महाप्रयाण के बाद उनके पारिवारिकजनों ने पूज्यप्रवर के दर्शन किए।