साध्वीप्रमुखाश्री के मनोनयन पर आध्यात्मिक उद्गार
वर्धापन करने उत्सुक है श्रद्धा भीगा पल्लव-पल्लव।
डाल-डाल पर पक्षी चहके मंगल गीतों का गुंजारल।।
भाव तरंगें मचल रही हैं छूने नभ की ऊँचाई को।
गिरती-उठती और मचलती पाने अंतः गहराई को।
किस्मत की किश्ती पहुँचाएँ तट पर आर-पार अर्णव।।
सम-शम-श्रम का अवलंबन ले चले चरण आरोहण करते।
तप-जप-ध्यान-मौन परकोटा भीतर का परिशोधन करते।
स्वाध्याय-नाद होता जब मुखरित चुप्पी साधे पंचम कलरव।।
संयम रक्षा-कवच तुम्हारा गुरुनिष्ठा का संबल साथ।
आत्म-सदन में सदा निहारा आर्यत्रयी का सिर पर हाथ।
पौरुष की प्रतिमान बनी हो, कालजयी बन जाए हर लव।।
सीखें तेरी सन्निधि में हम आत्म-विकास के गीत नए।
तन-मन-वचन-कर्म स्याही से लिखते जाएँ लेख नए।
शिक्षण-वीक्षण और समीक्षण, धार बहाओ तुम अभिनव।।
आज सलोनी भोर भई करने वंदन-अभिनंदन।
सतरंगे फूलों से सुरभित तेरापंथ का यह नंदनवन।
महातपस्वी महाश्रमण का अभिलेख बना गण का गौरव।।
उन्नत भाल पर तिलक लगाएँ चिन्मय जोत जले ज्योतिर्मय।
श्रुत-सागर में कर अवगाहन पाएँ मुक्ताफल अमृतमय।
यही सदाशय रहो निरामय, फैलाते आध्यात्मिक सीख।।