आचार्यश्री महाश्रमण दीक्षा कल्याण महोत्सव पर
जय ज्योतिचरण जय महाश्रमण गुरुराज की।
करते अभ्यर्थना भैक्षवगण सरताज की।।
नेमामां के राज दुलारे, तात झूमर के हैं ध्रुव तारे।
दुगड़ कुल के हैं उजियारे, हम सब के हैं तारणहारे।।
मुनि सुमेर से दीक्षा पाई, तुलसी की थी कृपा सवाई।
महाप्रज्ञ ने प्रज्ञा जगाई, शासन हित में बने वरदाई।।
मुस्काता मनहारा चेहरा, सजगता का पल-पल पहरा।
आगम वाङ्मय ज्ञान है गहरा, करुणा की नित बहती लहरा।।
अपने आपमें मस्त हैं रहते, सत्कार्यों में व्यस्त हैं रहते।
सबका मार्ग प्रशस्त हैं करते, परीषहों से त्रस्त न रहते।।
तुझको पाकर महके गणवन, टूटे भवसागर के बंधन।
युगप्रधान करते अभिनंदन, प्राणों में भर दो नव स्पंदन।।
हर तंत्री के तार तुम्हीं हो, आस्था के आधार तुम ही हो।
करुणा के अवतार तुम ही हो, मधुरिम जीवन धार तुम ही हो।।
विघ्न विनायक महाश्रमण हैं, शांतिप्रदायक महाश्रमण हैं।
सुखदायक प्रभु महाश्रमण हैं, जन उन्नायक महाश्रमण हैं।।
हैं गणनायक धर्म धुरंधर, उन्नति पथ पर बढ़ूँ निरंतर।
दोनों हाथ से दो आशीर्वर, संघ सेवा करूँ जीवन-भर।।
करे अर्चना सर्व कलाएँ, अर्पित है सब भाव ऋचाएँ।
दीक्षा कल्याणक हम मनाएँ, युगों-युगों तक शासना पाएँ।।
लय: ये रामायण है---