गुरुवर दीदार तेरा
गुरुवर दीदार तेरा, लगता है सबको प्यारा।
लगता है सबको प्यारा, लाखों आँखों का तारा।।आं0।।
बिंदु में सिंधु समाया, बिरुआ बरगद लहराया।
रजकण मेरु कहलाया।।
रूं रूं में विनम्रता है, साँसों में समरसता है।
नयनों में वत्सलता है।।
पावन आचार तेरा, मधुमय व्यवहार तेरा।
उज्ज्वल आचार तेरा।।
जय-जय हो जय संघ प्रभाकर, जय-जय हो जैन दिवाकर।
जयतु जय महाश्रमणवर।।
पट्टोत्सव पर्व मनाएँ, गुण गा भू नभ गुंजाएँ।
‘सोमा’ कण-कण सरसायें।।
लय: भिक्षु गणिराज तेरे----