साध्वी श्रुतिप्रभा स साध्वी सिद्धांतप्रभा
महातपस्वी महायशस्वी अभिनंदन शत् बार।
हर्षित दशों दिशाएँ पुलकित हो आज बधाएँ।।
सुरगण मिलकर तेरे चरण पखारे,
जय-जय नंदा जय-जय भद्दा उचारे,
तेरी पावन सन्निधि पाने तरस रहे नर-नार।।
निर्मल आभामंडल सबको लुभाए,
दर्शन को जो भी आप सुख-शांति पाए,
ऐसे गणशेखर को पाकर जग की क्या दरकार।।
ज्योतिचरण तेरी यश गाथा गाएँ,
श्रद्धा समर्पण का अर्ध्य चढ़ाएँ,
युग-युग तेरे संरक्षण में संघ रहे गुलजार।।
दूरदर्शिता गुरुवर की रची नई ऋचाएँ,
संकल्प शक्ति अनुपम दृश्य नए दिखाएँ,
वैरागी संख्या वृद्धि का स्वप्न बने साकार।।
अमृत महोत्सव अवसर वरदान चाहें,
पावन श्रुत गंगा में नित अवगाहें,
तारणहारे प्रभुवर तुम हो आस्था के आधार।।
लय: स्वर्ग से सुंदर----