भगवान महावीर जन्म कल्याणक के विविध आयोजन
लुधियाना
भगवान महावीर की मूल शिक्षा हैµअहिंसा। अहिंसा ही सबसे बड़ा धर्म है। किसी के अस्तित्व को मिटाने की अपेक्षा उसे शांति से जीने दो और स्वयं भी शांति से जियो। इसी में सभी का कल्याण है। सभी जीव-जंतुओं के प्रति अर्थात् पूरे प्राणिमात्र के प्रति अहिंसा की भावना रखकर किसी प्राणी की अपने स्वार्थ व जीभ के स्वाद आदि के लिए हत्या न तो करें और न ही करवाएँ और हत्या से उत्पन्न वस्तुओं का भी उपयोग नहीं करें। यह शब्द मुनि विनय कुमार जी ‘आलोक’ ने भगवान महावीर जन्म कल्याणक दिवस पर आचार्य तुलसी कल्याण केंद्र तेरापंथ भवन में व्यक्त किए। कार्यक्रम में संगरूर, समाना, नाभा, अहमदगढ़, फिलौर, शेरपुर, जगराओं पंजाब के विभिन्न क्षेत्रों से श्रावक-श्राविकाओं ने भाग लिया। कार्यक्रम का संचालन मुनि सुपास कुमार जी ने किया।
शासनश्री मुनि विमल कुमार जी ने कहा कि भगवान महावीर ने अपने प्रवचनों में अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह पर सबसे अधिक जोर दिया। उन्होंने कहा कि जो जिस अधिकार का हो, वह उसी वर्ग में आकर सम्यक्त्व पाने के लिए आगे बढ़े। जीवन का लक्ष्य है समता पाना। मुनि स्वास्तिक कुमार जी ने कहा कि अपनी बात को सही और दूसरों की बात को गलत मानने के कारण ही समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। लेकिन महावीर स्वामी का अनेकांत दर्शन हमें किसी भी समस्या पर खुले नजरिए से सोचने की दृष्टि देता है। महावीर स्वामी ने अनेकांत दर्शन की अवधारणा दी। मुनि धन्यकुमार जी ने कहा कि भगवान महावीर का एक महत्त्वपूर्ण संदेश हैµक्षमा। यदि भगवान महावीर की इस शिक्षा को हम व्यावहारिक जीवन में उतारें तो फिर क्रोध एवं अहंकार मिश्रित जो दुर्भावना उत्पन्न होती है और जिसके कारण हम घुट-घुटकर जीते हैं, वह समाप्त हो जाएगी।
कार्यक्रम में मुनि अक्षय कुमार जी ने गीत प्रस्तुत किया। तेरापंथ सभा के अध्यक्ष अभय राज, तेयुप के अध्यक्ष तरुण जैन, महिला मंडल की अध्यक्षा इंदिरा सेठिया और सूर्य प्रकाश आदि वरिष्ठ अतिथियों ने भगवान महावीर के जीवन-दर्शन पर प्रकाश डाला। श्रावक सूर्य प्रकाश सामसुखा ने महावीर के जीवन पर मुख्य अनेकांत, अपरिग्रह आदि की तुलना वर्तमान में की। कुलदीप सुराणा ने महावीर की साधना की चर्चा की। मनोज धारीवाल ने उपस्थित श्रावकों का धन्यवाद प्रस्तुत किया।