भक्तामर - एक कल्पवृक्ष अनुष्ठान

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भक्तामर - एक कल्पवृक्ष अनुष्ठान

नाथद्वारा।
तेरापंथ भवन में साध्वी डॉ0 परमयशा जी के सान्निध्य में ‘भक्तामर - एक कल्पवृक्ष आध्यात्मिक अनुष्ठान’ के कार्यक्रम का समायोजन हुआ। साध्वी डॉ0 परमयशा जी ने कहा कि जैन परंपरा में कई प्राणवान यंत्र, मंत्र, जाप है। जिससे विघ्न-बाधाओं का निवारण होता है। अशुभ कर्म दूर होते हैं, शुभ कर्मों का अभ्युदय होता है। भक्तामर एक महाप्रभावक स्तोत्र है। इसकी महिमा अपरंपार है। पग-पग पर होता चमत्कार है। इसके रचनाकार हैं आचार्यश्री मानतुंग। जो जैन धर्म के प्रभावक आचार्य हुए हैं। जिन्हें राज्य की ओर से किसी वजह से 48 तालों की जेल में बंद कर दिया गया। वे आशु कवि थे। धुरंधर पंडित थे। उन्होंने कारागृह में आदिनाथ भगवान की स्तुति की। भक्तामर के श्लोकों की रचना की। स्तुति में इतने तल्लीन हो गए कि कारागृह के 48 ताले टूट पड़े। सब जन आचार्यप्रवर के चरणों में नतमस्तक हो गए। साध्वीवृंद द्वारा गीत का संगान किया गया तथा भक्तामर का अनुष्ठान रिद्धि, मंत्र आदि के द्वारा करवाया गया।