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अर्हम्
प्रो0 मुनि महेंद्रकुमार जी स्वामी तेरापंथ धर्मसंघ में विशिष्ट व्यक्तित्व के धनी थे। आचार्यश्री महाश्रमणजी द्वारा बहुश्रुत परिषद् के संयोजक पद मनोनीत करना उनकी विशिष्टता को उजागर करता है। तीन आचार्यों के वे कृपापात्र रहे हैं। जैन विश्व भारती, जैन विश्व भारती संस्थान (मान्य विश्वविद्यालय) के दीर्घकाल तक प्रभारी रहते हुए इनके विकास में योगभूत बने। प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान के विकास में भी आपका महान् योगदान रहा है। आप जैन विद्या और जैन आगमों का ज्ञाता होने के साथ-साथ साहित्य निर्माण, आगम-संपादन में अनवरत लगे रहते थे। भगवती जैन आगम संपादन में आपके श्रम, शक्ति और समय नियोजन को तेरापंथ धर्मसंघ कभी विस्मृत नहीं कर सकता।
प्रो0 मुनि महेंद्रकुमार जी स्वामी की अर्हता और कार्यों को देखते हुए समय-समय पर आचार्यों द्वारा सम्मानित भी होते रहे हैं। वे प्रेक्षा प्राध्यापक, आगम मनीषी, बहुश्रुत परिषद् के सम्माननीय सदस्य और बाद में इस परिषद् के संयोजक बनाए गए। ऐसे व्यक्तित्व का चला जाना अपने आपमें धर्मसंघ के लिए महान क्षति है। मुनि अजित कुमार जी स्वामी तपस्वी होने के साथ-साथ सेवाभावी भी हैं। उनकी सेवा से मुनिश्री निश्चिंत होकर कार्य में लगे रहते थे। मुनि जम्बूकुमार जी स्वामी, मुनि अभिजीत कुमार जी, मुनि जागृत कुमार जी और मुनि सिद्धकुमार जी को भी उनकी सन्निधि में रहकर विकास का और साथ ही सेवा का अवसर प्राप्त हुआ। वैरागी काल और दीक्षा के बाद समय-समय पर मुनिश्री की सन्निधि का अवसर मुझे भी मिलता रहा है। मुनिश्री विद्वान होने के बावजूद विनोदप्रिय स्वभाव के भी थे। मुनिश्री के साथ जुड़े पल अनेक बार स्मृति पटल पर आते रहते हैं। मुनिश्री की आत्मा शीघ्र अपने चरम लक्ष्य मुक्तिश्री का वरण करे। मंगलकामना।