आध्यात्मिक, वैज्ञानिक व्यक्तित्व का महाप्रयाण
जैन तेरापंथ धर्मसंघ एक महान धर्मसंघ है। इस धर्मसंघ में अनेक विशिष्ट साधु-साध्वी हुए हैं। यशस्वी एवं तेजस्वी साधु-साध्वियों में मुनि महेंद्र कुमार जी भी विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उस समय की कॉलेज एम0एस0सी0, बी0एस0सी0 विज्ञान की शिक्षा प्राप्त कर जैन तेरापंथ में गणाधिपति गुरुदेवश्री तुलसी के हाथों दीक्षित हुए। उसके बाद गुरुकुलवास में रहकर आगम शास्त्रों का गहन अध्ययन किया। अंग्रेजी का अच्छा ज्ञान होने से अन्य दर्शनों का ज्ञान भी अच्छा हो गया। आध्यात्मिक और आधुनिक, वैज्ञानिक व्यक्तित्व के रूप में उभरकर संघ में तैयार हो गए। आचार्यश्री तुलसी एवं महाप्रज्ञ के संयुक्त प्रयास से उस समय प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान, अणुव्रत, अहिंसा प्रशिक्षण आदि अवदानों को व्यापक एवं गति देने में मुनि महेंद्र कुमारजी और संसारपक्षीय पिताजी जेठाभाई जवेरी का बहुत बड़ा सहयोग रहा। पिता पुत्र की जोड़ी ने प्रेक्षाध्यान, जीवन विज्ञान को वैज्ञानिकता का आधार प्रमाण देकर प्रमाणित करने में बहुत बड़ा सहयोग रहा है। गुरुदेव तुलसी एवं महाप्रज्ञ के बहुत सहयोगी रहे हैं। वर्तमान आचार्यश्री महाश्रमण जी के भी बहुत सहयोगी रहे हैं। हम बंधुत्रय संत इसके साक्षी रहे हैं। जिस समय लाडनूं में गुरुदेव तुलसी ने योगक्षेम वर्ष में सैकड़ों साधु-साध्वियों का प्रशिक्षण शुरू किया उस योजना आयोग के प्रमुख निर्देशक आप ही थे। साथ में महाश्रमण जी भी थे और उस समय पूरा आयोग शासनश्री सोहनलाल जी (डूंगरगढ़) के ग्रुप में आ गया और हम बंधुत्रय संत मिलकर 10 संतों से पूरे वर्ष-भर साथ रहने का योग मिला था। इस प्रकार कई बार साथ-साथ रहने का बहुत काम पड़ा था। मुनिश्री की मिलनसारिता, आत्मीयता ने छोटे-बड़े सभी साधु-साध्वियों को बहुत प्रभावित किया है। उनका जीवन विनय, विवेक, विद्या के गुणों का संगम था। तपस्वी मुनि अजित कुमार जी ने बड़े आत्मीय भाव से लंबे समय तक सेवा की है। यह अनुकरणीय है। लगता है पूर्व के गहरे संस्कार हैं। अंतिम समय में मुनि अभिजीत कुमार जी, मुनि जम्बू कुमार जी आदि ने भी अच्छी सेवा की। दिवंगत आत्मा के प्रति आध्यात्मिक मंगलकामना।