अर्हम्

अर्हम्

विद्वत् वरेण्य मुनिश्री महेंद्र कुमार जी का महाप्रयाण हो गया। मुनिश्री परम पूज्य गुरुदेवश्री तुलसी के करकमलों से दीक्षित उच्च स्तरीय शिक्षा प्राप्त प्रथम मुनि के रूप में प्रतिष्ठित संत थे। प्रज्ञा पुरुष आचार्यश्री महाप्रज्ञ जी द्वारा आविष्कृत प्रेक्षाध्यान प्रणाली के विकास में उनका महनीय योगदान रहा। आचार्यश्री तुलसी ने धर्मसंघ में योगक्षेम वर्ष की आयोजना की। उस वक्त भी आध्यात्मिक, वैज्ञानिक व्यक्तित्व निर्माण की दृष्टि से प्रबुद्ध वर्ग को प्रशिक्षण प्रदान करने का गौरव प्राप्त किया। मुनिश्री की विशिष्ट अर्हताओं का सम्मान करते हुए महातपस्वी आचार्यश्री महाश्रमण जी ने उनको बहुश्रुत परिषद् के संयोजक के पद पर मनोनीत किया। तीन-तीन युग प्रधान आचार्यप्रवरों की महर नजर प्राप्त मुनिश्री ने आगम समुद्र से अमूल्य रत्नों को उपलब्ध करने में अपनी श्लाघनीय प्रतिभा और प्रवर पराक्रम का प्रयोग किया।
‘उत्कर्ष’ कार्यक्रम के माध्यम से मुंबई के कण-कण में नई चेतना का संचार किया। प्रायः गुरुकुलवासी रहने वाले मुनिप्रवर को परम पूज्य गुरुदेव के पावन दर्शनों का सुयोग मिल जाता तो ‘सोने में सुहागा’ उक्ति चरितार्थ हो जाती। मुनिश्री तपस्वी संत अजीत कुमार जी स्वामी आदि संतों ने मुनिप्रवर की सेवा सुश्रुषा कर धन्यता महसूस की। इस अवसर पर मैं मंगलकामना करती हूँ कि मुनिश्री की आत्मा ऊर्ध्वारोहण करती हुई निर्बाध सुखों को प्राप्त करे।