जीवन में शांति के लिए कषायों का शमन करें: आचार्यश्री महाश्रमण

गुरुवाणी/ केन्द्र

जीवन में शांति के लिए कषायों का शमन करें: आचार्यश्री महाश्रमण

सायण, सूरत, 19 अप्रैल, 2023
प्रातः स्मरणीय आचार्यश्री महाश्रमण जी प्रातः धवल सेना के साथ लगभग 13ः4 किलोमीटर का विहार कर सायण के डीआरजी स्कूल में प्रवास हेतु पधारे। परम पावन ने प्रेरणा पाथेय प्रदान करते हुए फरमाया कि वर्तमान अवसर्पिणी के भरत क्षेत्र में चौबीस तीर्थंकर हुए। इनमें सोलहवें तीर्थंकर भगवान शांतिनाथ हुए। एक भौतिकता का जगत है, दूसरा आध्यात्मिकता का जगत है। दोनों जगत में पद व्यवस्था भी है। भौतिक जगत में सबसे बड़ा पद चक्रवर्ती का होता है। जबकि आध्यात्मिक जगत में तीर्थंकर शिखर पुरुष होते हैं। एक ही जीवन में कोई व्यक्ति भौतिकता के शिखर और अध्यात्म के शिखर पर भी पहुँच सकता है, अगर ऐसा होता है तो यह अति विशिष्ट घटना संभवतः हो जाती है। भगवान शांतिनाथ ऐसे महापुरुष हुए हैं, जो चक्रवर्ती भी बने और तीर्थंकर भी हुए। और भी व्यक्ति ऐसे बने हैं।
शांतिनाथ महर्द्धिक चक्रवर्ती थे, भारतवर्ष का परित्याग किया और वे लोक में शांति करने वाले हैं। वे अनुत्तर गति-सिद्धि गति को प्राप्त हुए हर आदमी के मन में शांति की आकांक्षा रहती है। इसके लिए शांति के अनुरूप कार्य हो और शांति के बाधक तत्त्वों से बचें। शांति के बाधक तत्त्व हैं-भय, चिंता, गुस्सा और लोभ। इनसे शांति नष्ट या प्रतनू हो जाती है। समझदार आदमी इनसे दूर रहें। भय और चिंता प्रशस्त व अप्रशस्त हो सकते हैं। गुस्सा और लोभ भी शांति में बाधक तत्त्व हैं। जप करते रहें ताकि मानसिक चित्त समाधि रहे। कषाय विजय की साधना होती रहे। शांति तो हमारे भीतर है। देह में उत्पन्न कष्ट को सहन करो। वह महाफल देने वाला, महान निर्जरा का लाभ देने वाला हो सकता है।
हमारा धर्म है-सहन करना। सहन करो, सफल बनो। शांति रखो, सफल बनो। श्रम करो, सफल बनो। निर्जराकारक श्रम करने से हमें लाभ मिल सकता है। आज चतुर्दशी है, पूज्यप्रवर ने चतुर्दशी पर हाजरी का वाचन करवाया एवं प्रेरणाएँ प्रदान करवाई। हाजरी का दिन मर्यादा-आचार की स्मरणा का दिन होता है। हम आचार्य भिक्षु के ग्रंथों का स्वाध्याय करें। महाप्रज्ञ श्रुत आराधना पाठ्यक्रम भी एक गहन ज्ञानार्जन करने का पाठ्यक्रम है। और भी अनेक पाठ्यक्रम हो सकते हैं। बहुश्रुत बनने का प्रयास करें। ज्ञान के क्षेत्र में पुरुषार्थ करेंगे तो परिणाम आ सकेगा। ज्ञान, साधना और सेवा का विकास करते रहें। अवसर का लाभ उठाना चाहिए। चारित्रात्माओं द्वारा लेख पत्र का वाचन किया।
साध्वीप्रमुखाश्री विश्रुतविभा जी ने कहा कि जो व्यक्ति पराक्रम-पुरुषार्थ करता है, वह व्यक्ति जीतता है। जैन धर्म की साधना पुरुषार्थ पर आधारित साधना है। जो व्यक्ति पुरुषार्थ करता है, वह अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है। तेरापंथ की हम आचार्य परंपरा को देखें कि सभी ने कितना पुरुषार्थ किया है। पुरुषार्थ का ही परिणाम है कि आज ग्यारहवीं पीढ़ी के प्रति लोगों का आकर्षण बना हुआ है। पूज्यप्रवर के स्वागत में सायन सभाध्यक्ष राजेश चोरड़िया ने अपनी भावना व्यक्त की। तेरापंथ महिला मंडल एवं स्थानकवासी महिला मंडल ने गीत प्रस्तुत किया। ज्ञानशाला की प्रस्तुति हुई। तपगच्छ संप्रदाय के मुनि अमरचंद जी ने भी अपनी भावना अभिव्यक्त की। कार्यक्रम का संचालन मुनि दिनेश कुमार जी ने किया।